बचपन में देखे गये सलोने सपनों की दुनिया से निकलकर एक बच्चा कब तितलियों और फूलों की दुनिया को सहसा झटककर उस दोराहे पर आ जाता है, जहाँ से कुछ ऐसे सम्बन्धों और ख़्वाहिशों को पंख लगते हैं, जिसे भली समझी जाने वाली दुनिया के दरवाज़े के भीतर ले जाने की सनातन मनाही चली आ रही है... ऐसे में, एक समय वो भी आता है, जब दोस्ती, भरोसा, ईमानदारी और इश्क़ जैसी बातें बेमानी लगने लगती हैं... काला जादू जानने वाले किसी जादूगर के बक्से से निकलकर उड़ने को आतुर चिड़िया बेसब्री की डाल कुतरती है, जिसे 'सेक्स' के अर्थों में समझना सबसे प्यारा खेल बन जाता है.....
इन कहानियों की फंतासी में पड़े हुए ऐसे अनगिनत पलों में इश्क़ के सबसे सलोने सुरखाबी पंख नुचते जाते हैं, जो उसे प्रेम कम, कारोबार की शक्ल में बदलने को आतुर दिखते हैं। इसी कारण, सेक्स की परिणति पर पहुँचे हुए किरदारों का सपना टूटता है और इश्क़ की दुकान बन्द मिलती है....
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