धीरेन्द्र सिंह जफ़ा की अपनी जीवन-यात्रा की तरह उनकी ये कहानियाँ भी बहुआयामी हैं। इन कहानियों में वे किसी एक विषय-वस्तु पर केन्द्रित नहीं रहे हैं। उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, पारिवारिक और नैतिक प्रसंगों को फोकस करते हुए कहानियों में उनकी अर्थवत्ता को उजागर किया है। किसी एक अनुभव- बिन्दु से आरम्भ होकर उनकी कहानियाँ लगातार एक बृहत्तर अनुभव-संसार की ओर अग्रसर होती जाती हैं और इस प्रक्रिया में हमारे समय के असली रूप रंगों को भी उभारते जाते हैं ।
'जय सियाराम' कहानी में यह दिखाया गया है कि एक धार्मिक प्रसंग किस प्रकार कुछ बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों के बीच बहस का मुद्दा बनता है और ये लोग अपने स्वार्थ-साधन के लिए किस प्रकार उसका उपयोग करते हैं। कथाकार 'जय सियाराम' और 'जय श्रीराम' के अभिप्रायों के बीच के बारीक फ़र्क़ को रेखांकित करते हुए संकीर्ण मानसिकता की ओर भी संकेत करता है। इस तरह के और भी बहुत-से संक्रमण -बिन्दुओं को दूसरी कहानियों का विषय बनाया गया है। लेखक ने जीवन की यात्रा में आगे बढ़ते हुए इन कहानियों के पात्रों को नैतिकता और इनसानियत की कसौटी पर परखा है न उनके चरित्र को घटाकार और न ही उन्हें अतिरंजित करके ।
लेखक ने संग्रह में शामिल रचनाओं को 'कहानी' न कहकर 'कथा' कहा है। ये कहानियाँ चाहे छोटी हों या लम्बी, इनमें एक दीर्घता जरूर है। ठहराव जरूर है और यह दीर्घता कहानी के समाप्त हो जाने के बाद भी उसके प्रभाव की दीर्घता है जो लम्बे समय तक पाठकों के मन-मस्तिष्क पर छायी रहती है।
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