Footpath Par Kamsutra (CSDS)

Hardbound
Hindi
9789352293599
1st
2016
325
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नारीवाद और सेक्शुअलिटी एक-दूसरे से गुँथे हुए हैं। एक की दूसरे के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर भारतीय समाज में रिश्तों के धरातल पर होने वाले परिवर्तनों को समझना है तो हमें नारीवाद द्वारा भिन्नता के ज़रिये संसाधित होने वाली समानता और सेक्शुअलिटी के हाथों बनते जा रहे स्त्री और पुरुषों के मानस का संधान करना ही होगा। इस पुस्तक में कुछ एथ्नोग्राफ़िक नोट्स, कुछ विश्लेषण और कुछ विवरण सम्मिलित हैं जिनके ज़रिये भारतीय समाज में निजी और अंतरंग धरातल पर बनने वाले मानवीय रिश्तों की आधुनिक गतिशीलता रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। इसमें साहित्य और पत्रकारिता को एक प्रमुख स्रोत के रूप में अपनाया गया है। पिछले पच्चीस साल के दौरान हिंदी में लिखे गए उपन्यासों और आत्मकथाओं में ऐसी कई कृतियाँ शामिल हैं जो नारीवाद और सेक्शुअलिटी के परिष्कृत निरूपण के लिहाज़ से अनूठी हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी की पत्र-पत्रिकाओं से बाज़ार, रोज़गार और निजी जीवन में होने वाले परिवर्तनों की झलक मिलती है। देखने वाली आँख निरंतर विशाल और विविध होते हुए मीडिया के भीतर झाँक कर कई अनचीन्ही बातें खोज सकती है। यह सामग्री किसी नये सिद्धांत की तरफ़ ले जाने का दावा तो नहीं करती, लेकिन यदि पाठकों ने इसका सहानुभूतिपूर्वक अनुशीलन किया तो शायद उन्हें इसके भीतर एक नयी दृष्टि की सम्भावना ज़रूर दिख सकती है।

अभय कुमार दुबे (Abhay Kumar Dubey)

विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) के भारतीय भाषा कार्यक्रम में सम्पादक। रजनी कोठारी, आशीष नंदी और धीरूभाई शेठ समेत अन्य कई समाज वैज्ञानिकों की प्रमुख रचनाओं का अनुवाद करने के अलावा लोक चिं

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