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बालकृष्ण भट्ट - निबन्धों की दुनिया -
बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु युग के लेखकों-पत्रकारों एक जगमगाता हुआ नाम है। भट्ट जी न केवल आधुनिक हिन्दी के निर्माताओं में हैं, बल्कि उन्होंने निबन्ध विधा की शुरुआत की और उसे ऊँचाई तक भी पहुँचाया। जिस 'हिन्दी प्रदीप' का सम्पादन उन्होंने 1877 से 1910 अर्थात बत्तीस वर्षों तक किया, उसकी लोकप्रियता मुख्यतः उनके रोचक और धारदार निबन्धों के कारण ही थी। इन निबन्धों की दुनिया इतनी व्यापक है कि इसमें साहित्य, भाषा, समाज, इतिहास, मनोविज्ञान तथा जीवन के विविध रूपों की सहज छवि उपलब्ध होती है। भट्ट जी की ख़ूबी यह है कि वे अपनी प्रखर आलोचनात्मक दृष्टि से हर विषय के मूल तक पहुँच जाते हैं और साथ ही अपनी निर्भीक राय भी प्रस्तुत करते हैं। उनके यहाँ ठकुरसुहाती के लिए कोई जगह नहीं है। यही कारण है कि भारतीय नवजागरण के उन्नायकों में एक होने के बावजूद उन्होंने अनेक ऐसे विचारों का विरोध किया जो उन दिनों प्रगतिशीलता के आवश्यक लक्षण माने जाते थे। एक उदाहरण लीजिए 'हम अपनी एक निराली ही तान गा रहे हैं कि कमसिनी के ब्याह मुल्क से उठा दिया जाये बस, देश उन्नति के शिखर पर एक बारगी छलाँग मार उछलकर चढ़ जाये। किसी सत्यानाशी को विलायत यात्रा सवार है। किसी ने होटलों में बैठ अंग्रेज़ों का जूठा खाने ही में मुल्क के आज़ाद करने का उपाय सोचा हुआ है।' बालकृष्ण भट्ट को हिन्दी का एक अनूठा गद्यकार माना जाता है। उनकी अक्खड़ और बेलौस भाषा की भीतरी तहों में प्रेम और सद्भाव की जो उष्ण लहर दिखाई देती है, वह उनकी गहन मानवीयता का अकाट्य प्रमाण है।
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