राजनीति के कवित्त -
कवि देवीदास हिन्दी के उन क्रान्तिकारी कवियों में हैं जिनके विषय में हिन्दी-साहित्य-इतिहास ग्रन्थों में समुचित मात्रा में सूचना उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध सामग्री भी बिखरी-बिखरी, अनमेल है। उनकी रचना युग से इतने आगे है कि उसका मूल्यांकन भी नहीं किया जा सका। भक्तिकाल के अन्तिम पर्व में जब अचानक कवि दरबारों की ओर खिंचते हुए राजाओं के गुणकीर्त्तन और सुन्दरियों के नाकनक्श की कमनीयता बखानने में ही कवि कर्म की सफलता समझने लगे थे, तब उस युग में राजाश्रय को ठोकर मारते हुए सामान्य जनजीवन की समस्याओं को लेते हुए; उनके हल का एकमात्र उत्कृष्ट साधन राजनीति को ही मानते हुए; कवि देवीदास ने राजाओं के लिए राजनीति के पाठ तो रचे ही; साधारण जनता को भी राजनीति के गुरुओं से दीक्षित करने की कोशिश की।
प्रस्तुत रचना-राजनीति के कवित्त-में विविध हस्तलेखों की तुलनात्मक समीक्षा के आधार पर पाठ वैज्ञानिक निकष पर कसे हुए उनके कवित्तों के प्रामाणिक पाठ प्रस्तुत किये गये हैं। जिनसे हिन्दी साहित्य के मध्यकाल की मान्यताओं को एक ज़ोरदार झटका लगता है। उसे रीति श्रृंगार मात्र की समझने-समझाने की सीमा अपने आप चटक जाती है।
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