Pooja Ki Pothi

Hardbound
Hindi
9788170559078
2nd
2011
240
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तमाम आधुनिकता के बावजूद हर कहीं जनसाधारण में कर्मकाण्ड के प्रति आस्था घटने के बजाय उल्टे कुछ बढ़ती चली जा रही है। इसके चलते एक विचित्र-सी स्थिति प्रस्तुत हुई है। जहाँ एक ओर कर्मकाण्ड जानने वाले तेजी से कम होते चले जा रहे हैं और पूजा-पाठ करानेवाले ब्राह्मणों के घरों तक में नयी पीढ़ी में कर्मकाण्ड के संस्कार नहीं पड़ रहे हैं, वहाँ दूसरी ओर कुछ पूजा-पाठ भी कर-करा लेने की ललक कुछ वैसे ही बढ़ रही है जैसे कुछ 'योगा' या 'रेकी' कर लेने की। नई पीढ़ी के इस तरह के लोग स्वयं पूजा करना जानते नहीं । उन्हें पूजा कराने वाले पण्डित भी बड़ी मुश्किल से मिल पाते हैं और मिलते भी हैं तो बहुधा वे ऐसे होते हैं जो कुछ भी उल्टी-सीधी पूजा कराकर तगड़ी दक्षिणा वसूल कर लेते हैं। पूजा करवाने वाले यजमान को कर्मकाण्ड का ककहरा भी नहीं मालूम होता इसलिए वह अज्ञानी पण्डित को टोक भी नहीं सकता।


पूजा करने-कराने की बढ़ती हुई इच्छा, ठीक से पूजा करा सकने वालों का अभाव और स्वयं पूजा न कर सकने की यह असमर्थता भारत के बड़े शहरों और कस्बों के नागरिक तथा विदेश में बसे भारतीय इधर बहुत तीव्रता से अनुभव करते रहे हैं। दैनिक और वार्षिक पूजाएँ करने की इच्छुक इस नई पीढ़ी के लिए बाजार में ऐसी कोई पुस्तक भी उपलब्ध नहीं है जिसमें पूजा करने की विधि और पूजा में आनेवाले प्रमुख श्लोकों के अर्थ समझा दिये गये हों। पाठकों की इसी आवश्यकता की पूर्ति करेगी पूजा की पोथी।

पूरन चन्द्र जोशी (Pooran Chandra Joshi)

पूरनचंद जोशी का जन्म 5 सितम्बर, 1921 को गल्ली अल्मोड़ा के एक कर्मकांडी और साहित्य अनुरागी परिवार में हुआ। माँ का देहांत बचपन में ही हो जाने के कारण उनके लालन, पालन की पूरी जिम्मेदारी इनके पिता कृप

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