अम्बा स्पैनिश भाषा के विश्वप्रसिद्ध लेखक फेदरीको गार्सिया लोर्का की नाट्यकृति 'यर्मा' का हिन्दुस्तानी रूपान्तर है।
अपने मौलिक स्वरूप में 'यर्मा' काव्यात्मकता लिये हुए है और स्वयं लोर्का इसे "तीन अंकों व छह दृश्यों की एक दुःखान्त कविता" कहते हैं, किन्तु अपने हिन्दी रूप में अम्बा न केवल गद्य में लिखा हुआ है बल्कि इसकी कथा का ताना-बाना भारतीय ग्रामीण परिवेश में बुना गया है और इसकी पृष्ठभूमि तथा सामाजिक सरोकार सभी पूर्णतः हिन्दुस्तानी हैं।
नाटक की नायिका अम्बा मातृत्व सुख से वंचित एक औरत है जो निःसन्तानता के सन्ताप से तो व्यथित है ही, उसे अपने पति का प्रेम और साहचर्य भी नहीं मिल पा रहा है- ऊपर से ग्रामीण समाज का लांछन अम्बा को और भी संत्रास देता है।
सन्तान की चाहत और सामाजिक रूढ़ वर्जनाएँ कुण्ठित करते-करते अम्बा में एक जुनून का सा रूप ले लेती हैं और उसके पति की बेपरवाही और उसका शक्की स्वभाव अन्ततः अम्बा को एक चरम पराकाष्ठा की तरफ़ धकेल देता है।
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