अस्तित्व की गूँज है कि हम सब पूर्ण हैं। पूर्ण से पूर्ण निकलता है। जो बचता है, वह भी पूर्ण ही होता है। यह संसार पूर्ण से निकला है। इसके बाद भी पूर्ण बचा हुआ है। जब कल यह सृष्टि परम अस्तित्व में वापस लौट जायेगी, तब भी पूर्ण ही उसकी प्रकृति होगी। जीवन में सम्पूर्णता की खोज एक महान आदर्श है। जीवन सब जगह पूर्णता की खोज करता है। पूर्णता की खोज पदार्थ में, पौधों में, जानवर में, पक्षियों में सभी जगह जारी है। हमें पत्थर जड़ लगते हैं, पेड़ में चेतना नहीं लगती है। पशु और पक्षियों में ज्ञान का अभाव दिखता है। लेकिन सभी तत्त्वों में जीवन की खोज चल रही है। हरेक तत्त्व का लक्ष्य ही जीवन है और जीवन का लक्ष्य पूर्णता प्राप्त करना है। यह पूर्णता ही परमात्मा है।
जब व्यक्ति की सारी इच्छाएँ ख़त्म हो जायें, जब व्यक्ति को दुख-सुख में समानुभूति हो, जब व्यक्ति के अन्दर चिन्ता, ज्ञान, वासना रूपी हरेक बन्धन ख़त्म हो जाता है, तब वह आत्मिक रूप से स्वतन्त्र हो जाता है। यह स्वतन्त्रता ही आत्मा की खोज है। यह स्थिति ही पूर्णता है। इसे प्राप्त करने के लिए न तो मृत्यु ज़रूरी है, और न ही परिश्रम । जीवन की क्षणभंगुरता के प्रति जागना ही चेतना का जागरण है। पूर्णता जीवन के ऊपर नहीं है। जीवन से अलग पूर्णता नहीं होती है। इस जीवन में ही सब कुछ है। मोक्ष हो या निर्वाण । महात्मा बुद्ध जीवन भर इसी बात की शिक्षा देते रहे कि खुद दीपक बनो। जीवन के चार आर्य सत्य हैं। इस सत्य को छोड़ना नहीं है, बल्कि इसे स्वीकार करना है। जीवन को छोड़ने से मृत्यु की प्राप्ति होती है, जीवन को अंगीकार करने, उसके प्रति जागरण से पूर्णता की राह मिलती है।
एक कहानी है। महान शिल्पी अपने घर में हथौड़ी और छेनी से कुछ काम कर रहा था। तभी कोई अतिथि उससे मिलने आ गया। शिल्पी चुपचाप दरवाज़ा खोला और अतिथि को पीछे-पीछे आने का इशारा किया। बातचीत के क्रम में अतिथि ने कहा कि कई दिनों से तुम दिख नहीं रहे थे। क्या तुम अभी भी मूर्ति के निर्माण में लगे हो। या वह कार्य पूरा हो गया। शिल्पी की कलाकृति देखने के बाद अतिथि वाह कहने से खुद को रोक न सका । उसने कहा-यह उत्कृष्ट है। यह महान कलाकृति है, जिसकी रचना तुमने की है। यह तुम्हारी अब तक सर्वश्रेष्ठ कृति है। शिल्पी ने कलाकृति पर काम जारी रखते हुए कहा- जब यह पूरी हो जायेगी, तो निःसन्देह उत्कृष्टता को प्राप्त कर लेगी। लेकिन इसमें बहुत काम है। इसके मुख में, हाथ पर, शरीर में तथा बालों में थोड़ा-थोड़ा काम बचा रह गया है। अतिथि ने कहा कि ये छोटी बातें हैं। तब शिल्पकार ने कहा कि ये छोटी बातें, छोटे प्रयास ही पूर्णता देते हैं। पूर्णता कोई छोटी बात नहीं है।
-इसी पुस्तक से
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