Abhinav Cinema

Paperback
Hindi
9789387648258
1st
2017
288
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सिनेमा पर भारतीय शास्त्रीय आलोचना परम्परा को आयद करने की कोशिश की शुरुआत करनेवाली ऐसी पुस्तक विश्व-सिने-समीक्षा इतिहास में पहली है। इसमें बहुत जोख़िम उठाया गया है ।

मतभेदों के बावजूद यह पुस्तक सही अर्थों में अपने क्षेत्र में एकदम नयी दृष्टि रखती और देती है, नूतन मार्ग बनाती है और अग्रगामी है। यह ऐसी अद्वितीय पुस्तक है कि मैं सख़्त सिफ़ारिश करता हूँ कि इसे व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से ख़रीदा जाये और सिनेमा तथा हिन्दी के पाठ्यक्रम में अनिवार्यतः सम्मानजनक जगह दी जाए।

-विष्णु खरे

܀܀܀

मैं रस-सिद्धान्त का जानकार नहीं हूँ, पर सिनेमा विधा के जादू ने मुझे बचपन से ही बुरी तरह से बाँध रखा है। मैंने इस विधा पर लिखा भी है, खूब लिखा है और आज भी किताब पढ़ने से अधिक सिनेमा को वक़्त देता हूँ। सबटाइटल वाली फ़िल्मों को देखने की आदत है इसलिए सिनेमा देखना एक तरह से पढ़ना भी है। प्रचण्ड प्रवीर की इस किताब में रस-सिद्धान्त को विश्व-सिनेमा के परिप्रेक्ष्य में बहुत शोध और मेहनत से देखा गया है। फ़िल्म को कई तरह से देखा और समझा जा सकता है इसलिए प्रवीर की इस पहल का स्वागत है। हिन्दी में विश्व-सिनेमा के सन्दर्भों की उच्चारण सम्बन्धी समस्या कम विकट नहीं है। प्रवीर को भी उससे जूझना पड़ा है। पर उन्होंने अंग्रेजी के रूप भी जगह-जगह दे दिए हैं। मुझे उम्मीद है कि यह पुस्तक फ़िल्म विधा को नये ढंग से देखने, जाँचने और समझने का मौक़ा देगी। मेरे प्रिय फ़िल्मकार गोदार की बात याद कर लूँ, फ़िल्म का प्रारम्भ, मध्य और अन्त होता है पर ज़रूरी नहीं है वह इसी क्रम में हो। इस पुस्तक को भी कुछ इसी तरह से पढ़ने की सुविधा है। उसी में उसका रस भी है।

-विनोद भारद्वाज

प्रचण्ड प्रवीर (Prachand Praveer )

प्रचण्ड प्रवीर प्रचण्ड प्रवीर बिहार के मुंगेर ज़िले में जन्मे और पले-बढ़े हैं। इन्होंने सन् 2005 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से रासायनिक अभियांत्रिकी में प्रौद्योगिकी स्नातक की

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