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Drishyantar

Ajit Rai Author
Hardbound
Hindi
9789355188144
1st
2023
176
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₹495.00

दृश्यांतर - डिजिटल युग में साहित्य और संस्कृति लेखन का जो हश्र इस दौर में देखा गया वैसा ही कुछ-कुछ टेलीविज़न के साथ भी हुआ। समय के साथ-साथ दूरदर्शन का एकाधिपत्य समाप्त हुआ और सेटेलाइट चैनल खुलने लगे तब एक दशक के पूरे होते-होते चैनलों की भरमार हो गयी, वैसे ही जैसे लघु पत्रिकाओं की एक भरमार सी आयी थी एक ज़माने में। हिन्दुस्तान में तक़रीबन एक हज़ार चैनलों को लाइसेंस प्रदान किया गया। उनमें से अब कितने अस्तित्व में बचे हुए हैं यह कहना मुश्किल है। साहित्य तो छोड़िए, संस्कृति के भी क्षेत्र में इनसे किसी योगदान की अपेक्षा निरर्थक होगी। व्यावसायिक टेलीविज़न का आधार या यूँ कहें कि उसका रेवेन्यू मॉडल ही ऐसा है कि उसमें संस्कृति और साहित्य पर केन्द्रित चीज़ों को जगह दे पाना असम्भव तो नहीं परन्तु मुश्किल ज़रूर हो जाता है। - त्रिपुरारि शरण पूर्व महानिदेशक, दूरदर्शन

अजित राय (Ajit Rai)

अजित राय देश के जाने-माने फ़िल्म एवं नाट्य समीक्षक, सांस्कृतिक पत्रकार और सम्पादक हैं। वे पिछले 35 वर्षों से देश के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय अख़बारों-पत्रिकाओं एवं रेडियो टेलीविज़न के

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