“ओऽऽ” बाहर आयी भूमिका को देखकर गौतम का मुँह खुला रह गया। भय-मिश्रित रोमांच साक्षात् नयी-नवेली दुल्हन कमरे में आन खड़ी है। सुर्ख लाल रंग का जोड़ा। लहँगा, कसा ब्लाउज़, गोरा पतला पेट, मासूम रोमावली, गहरी नाभि, बँधा जूड़ा, जूड़े में पिनों से खोंसी सुनहरी किनारी की गोटेदार चुन्नी। कलाइयों में छम-छम करते कलीरे। काजल पगी सीप-सी बड़ी आँखें उत्तेजक मेकअप, मस्कारा, सुर्ख लिपस्टिक और सेंट की मादक गन्ध जैसे उकसा रही हो। औरत, सम्पूर्ण औरत। लड़की इन रंगों में रच-बस घुल गयी। पनियायी आँखें, काजल, ख़ुशी या हैरानी जाने कितने भावों से। माहौल मादक। बाहर पेड़ झूम रहे थे बाराती से मदहोशी, उत्तेजना चरम पर थी। क्रीम, पाउडर, सेंट, लिपस्टिक की गन्ध और ठाँठे मारता यौवन का सागर, किनारों पर टक्करें मारती लहरें...लेकिन गौतम, प्रकाश की गति से पदपावर, पैसा-प्रतिष्ठा, ग्लैमर इत्यादि अथवा 'यह' । सैकड़ों प्रकाशवर्ष दूर कहीं किसी आकाशगंगा में एक तारा दिपदिपाया और बुझने को हुआ। “नाम...मामूनी...” वह किसी तरह बोल पायी। लेकिन नाम सुनने के लिए माया रुकी नहीं, तुरन्त अन्दर की तरफ़ लपकी। अन्दर से फिर मारपीट की आवाज़ें आने लगी थीं। पहली दुल्हन बाहर आना चाह रही थी। सबने देखा वह दरवाज़े पर प्रकट-सी हुई और फिर बाल पकड़कर भीतर घसीट ली गयी। दरवाज़े की चौखट को कसकर पकड़े हुए उसका हाथ फिसलता हुआ-सा कोठरी के अन्धकार में लुप्त होता चला गया। मोहल्ला-भर यहीं जमा हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे भीड़ छंटने लगी थी। इस मोहल्ले, गाँव और ख़ासकर बॉर्डर पार के गाँवों का लगभग यही हाल था। बेरोज़गार, निठल्ले और बुढ़ाती उम्र के लड़कों का ब्याह नहीं हो पा रहा था। कुछ घर से जुगाड़ कर, कुछ बेच-कमा कर, दूसरे राज्यों से दुल्हन ख़रीदकर ला रहे थे। मन्दिर में शादी की रस्म अदा होती, जिसका ख़र्च दूल्हा उठाता और दुल्हन के बाप को दस-बीस हज़ार नक़द देकर मोल-सा चुकाकर दुल्हन को विदा करा लाता। नक़द, मोलकी होने के चलते इनके अपने नाम गुम से गये। नाम और सम्बोधन तक ‘मोलकी' हो गये।
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