शायरी के साथ जिंदगी और सियासत की सरगर्मियों और पेचीदगियों को वाबस्ता करके नुसरत की शायरी परवान चढ़ती है। इनकी तरक्की पसंद शख़्सियत का प्रमाण इनकी नज़्मों में बाकायदा दिखाई देता है, जहाँ वे सब्जेक्ट को ही नहीं लफ़्ज़ और रूप को भी नयापन देते हैं। इनके “फार्म” में प्रगतिशील लेखन का वह पूरा दौर नुमाया होता दिखाई देता है, जिसका नज़रिया साफ़ ज़ेहन से चीज़ों को साफ़-साफ़ देखकर साफ़-साफ़ बयान करने का हिमायती रहा है।
नुसरत मोहिउद्दीन एक बड़े शायर के फरजंद हैं लेकिन यह परिचय ही पर्याप्त नहीं है। एक शायर के रूप में नुसरत की अपनी खुसूसियतें हैं जो नज़्मों में तो उभरकर दिखाई देती हैं, ग़ज़लों से भी झाँकती महसूस होती हैं। इसकी वजह कई हो सकती हैं। लेकिन एक वजह इनका तरक्की . पसंद नज़रिया है, जहाँ सपने और हक़ीक़त की टकराहट से कई धड़कनें वजूद में आती हैं। क्योंकि ये धड़कनें हैं, इसलिए लंबाई में इनके महत्त्व को नहीं नापा जा सकता। छोटी-छोटी नज़्में भी गहरी चोट करती हैं और एक तराशे हुए मुख़्तसर बुत की तरह ध्यान आकर्षित करती हैं। नुसरत की शायरी में अगर जिंदगी की पथरीली सच्चाइयाँ हैं तो हुस्नोशबाब का वसीला भी है। लेकिन हर हाल में उसका निशाना समाजी हक़ीक़त से जुड़ा हुआ है।
नुसरत मोहिउद्दीन (Nusrat Mohiuddin)
जन्म : सीताराम बाग़, हैदराबाद मेंशिक्षा : बी.ए. (उस्मानिया विश्वविद्यालय)स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद में अनेक वर्षों की सेवा के बाद अवकाश प्राप्त ।संप्रति : अनेक ट्रेड यूनियनों से संबद्ध, आंध्र प्र