Shesh Ji

Paperback
Hindi
9789390678860
1st
2021
296
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इन लेखों को पढ़ते हुए अहसास होता है कि शेष नारायण सिंह का व्यक्तित्व कैसा था। इसका पहला भाग उस व्यक्ति के बारे में है जिसने अपने रिश्तों को सँजोया और जीवन में मिले सभी लोगों को अपने लेखन का माध्यम बनाया। वह भावुक और बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे । पुस्तक के अन्य दो भाग वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और अन्तरराष्ट्रीय बहस पर आधारित हैं। उनको लेखन के साथ आत्मकथाओं को जानने का भी जुनून था। उनका निष्पक्ष और समाचार का सटीक विवरण उनके चुने इस पेशे को सच्ची श्रद्धांजलि देता है। लोकतन्त्र में उनका विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र की रक्षा, संरक्षण व पोषण के लिए एक निष्पक्ष और स्वतन्त्र प्रेस की ज़रूरत उनके लेखन में अक्सर दिखाई देती है ।

- भूमिका से


शेष नारायण सिंह एक पत्रकार के रूप में न केवल भारतीय राजनीति पर नज़र बनाये हुए थे, बल्कि उन्हें इसकी बेहतर समझ भी थी। प्रशिक्षण और जज़्बाती तौर पर वे इतिहासकार थे। उन्हें हिन्दी से अगाध प्रेम था, बावजूद इसके अंग्रेज़ी और उर्दू पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी । ज्ञान की गहराई और तथ्यों की सटीकता के चलते चार दशकों की उनकी लेखनी में यह स्पष्ट झलकता था कि वे एक सच्चे विद्वान थे । वे हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनों का अच्छा वाचन करते थे, हालाँकि उनके पास अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़ने का धैर्य नहीं था, मगर जब अंग्रेज़ी नॉन- फ़िक्शन की बात आयी तो उन्होंने सब कुछ पढ़ा। आर्थिक कठिनाइयों के दौर में जब भी उनके पास थोड़ा पैसा होता, वे किताबें ख़रीद लेते । घर पर उनकी लाइब्रेरी उनके विद्वत्तापूर्ण खोज और सोच की गहराई का ख़ूबसूरत चित्रण रही।

- इसी पुस्तक से

शेष नारायण सिंह (Shesh Narayan Singh)

जन्म : 18 फ़रवरी, 1951।शिक्षा : एम.ए. (इतिहास), गोरखपुर विश्वविद्यालय।शिक्षा समाप्ति के बाद सुलतानपुर के एक डिग्री कॉलेज में दो वर्ष तक अध्यापन करने के बाद पूर्णतः पत्रकार बन गये। 1993 में राष्ट्रीय स

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