एक टुकड़ा रोशनी
कीर्तिकुमार सिंह एक सिद्धहस्त कथाकार हैं। एक टुकड़ा रोशनी उनका श्रेष्ठ लघुकथा-संग्रह है। इससे पूर्व अधूरी दास्तान में ग़ाज़ीपुर निवास के दौरान लिखी गयी उनकी लघुकथाएँ चर्चा में रहीं ।
कीर्तिजी की मान्यता है कि स्थान और माहौल का उसके रचनाकार पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। अपने इस लघुकथा-संग्रह में लेखक ने इलाहाबाद प्रवास की रचनाएँ दी हैं। इनमें परिवेश भले ही बदला हो, किन्तु लेखक में मौजूद खिलन्दड़ापन जब-तब सिर उठाता नज़र आता है। इन लघुकथाओं की विशेषता यह है कि ये अपने ऊपरी स्वरूप में पहले पाठक को आकर्षित करती हैं और फिर उसे एक विशेष विचार-प्रक्रिया का हिस्सा बना देती हैं।
यक़ीन मानिए, आप इन्हें मज़ा लेने भर के लिए नहीं पढ़ सकते क्योंकि मूलतः लेखक का नाता दर्शन से है। उसके लिए कोई भी विषय किसी भी रूप और वस्तु में ग्राह्य है, लेकिन रचनाओं में उसका संस्कार वह अपने ही अन्दाज़ में करता है । यह संग्रह पढ़ते हुए पाठक एक नयी रोशनी अवश्य पायेंगे ।
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