छिन्नमस्ता - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित असमिया की प्रतिष्ठित कथाकार इन्दिरा गोस्वामी के उपन्यास 'छिन्नमस्ता' को असमिया पाठक-समाज में एक असाधारण सृष्टि कहा-माना गया है। यह उपन्यास शक्तिपीठ कामाख्या की पृष्ठभूमि में 1921 से 1932 की अवधि की घटनाओं पर आधारित है, लेकिन कहीं-कहीं इसकी कथावस्तु अपने अतीत को भी समेटती है। दरअसल कामरूप कामाख्या के इतिहास, वहाँ की परम्परा और लोक-गाथाओं का गम्भीर अध्ययन करके इन्दिरा जी ने इस उपन्यास में एक बड़े फलक पर छोटे-बड़े अनेक रंगारंग चित्रों को बड़ी कलात्मकता के साथ उकेरा है। 'छिन्नमस्ता' दो विरोधी विचारधाराओं——अहिंसा और हिंसा के टकरावों के बीच ग़रीबी, निरक्षरता, अज्ञान और अन्धविश्वासों से घिरे कामरूप के जन-जीवन की सच्ची कहानी है। विषय की गहराई तथा अतीत और वर्तमान के अनुभवों की समग्रता से भरपूर 'छिन्नमस्ता' अपनी सर्जनात्मकता, समाज-चेतना और मानवीय मूल्यों की सहज अभिव्यक्ति के कारण निस्सन्देह एक सार्थक और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है।
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