भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित अरुणाचल प्रदेश की एक जनजाति है मनपा । बौद्ध धर्मावलम्बी उस जनजाति के लोग मृतकों के शव को एक सौ आठ टुकड़े में काटकर नदी में बहा देते हैं। इसी रीति के आधार पर इस उपन्यास की कहानी केन्द्रित है। इस उपन्यास का मूल चरित्र दारगे नरबू एक शव काटने वाला आदमी है जिसे मनपा लोग थाम्पा कहकर पुकारते हैं। वह अपनी घर-गृहस्थी सँभालने में माहिर तथा बातुनग वाली पत्नी गुईसेगंमु तथा गुंगी बेटी रिजोम्बा के साथ नदी के किनारे समाज से दूर सुनसान जगह पर रहते हैं और अपने तवांग में छोड़ आये परिवार और दोस्तों की याद में खोये रहते हैं। उनके जीवन के साथ जुड़ी हुई हैं तिब्बत की छारिंग नाम की मठाधिकारी एक अवतारी संन्यासिन लामा आने सांगे नोरलजम। 1950 के बड़े भूकम्प, तिब्बत प्रशासन से तवांग का प्रशासन भारत सरकार को हस्तान्तरण, दलाई लामा का भारत आगमन, चीन का भारत आक्रमण, दलाई लामा द्वारा दीरांग में कालचक्र पूजा आदि विभिन्न ऐतिहासिक घटना से भरपूर यह मार्मिक असमिया उपन्यास पाठक तथा समालोचक दोनों द्वारा सराहा गया है और इसका नाट्य रूप राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय मंच पर सराहा गया।
अरुणाचल प्रदेश के कामेंग जिला में, 13 जून 1952 को जीगांव नामक पहाड़ी गाँव में जन्म। उन्होंने बचपन से ही असमिया भाषा में कविता, नाटक आदि लिखना शुरू कर बाद में कहानी, उपन्यास आदि लिखने लगे और लोकप्रि