Parul Dee

Paperback
Hindi
8126309954
1st
2004
132
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पारुल दी - दिनेश पाठक हिन्दी के सुपरिचित कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ एक परिवेश से जुड़ी होकर भी सम्पूर्ण भारतीय समाज के मर्म का उद्घाटन करती हैं और हमारे समय के संवेदनों पर छायी धुन्ध को छाँटने का प्रयास करती हैं। ये बहुआयामी धरातल की कहानियाँ हैं, जिनमें मानवीय जिजीविषा, संघर्ष व आस्था की सहज लेकिन गहरी अभिव्यक्ति है। संग्रह की इन कहानियों के पात्र बिना किसी हताशा निराशा के, अपने मूल्यों और आदर्शों के लिए कड़ा संघर्ष करते हैं। ये पात्र हमें नितान्त आत्मीय लगते हैं। दिनेश पाठक की कहानियों में सामाजिक सोच पूरी गम्भीरता से उतरती है। मूल्यों और आदर्शों की प्रतिष्ठा के बावजूद ये कहानियाँ अत्यन्त रोचक हैं जो अन्त तक पढ़ने को बाध्य करती हैं और पाठक के साथ विश्वसनीय सम्बन्ध स्थापित करती हैं। कथाकार का शिल्प परिपक्व है। वह अपने समय और विषयवस्तु को पूरी अर्थवत्ता के साथ प्रस्तुत करता है। भाषा में स्थानीयता की अकृत्रिम गन्ध है। 'पारुल दी' की रचनाएँ हिन्दी के सहृदय पाठक को अपनी ओर आकर्षित करेंगी, इसमें सन्देह नहीं।

दिनेश पाठक (Dinesh Pathak )

दिनेश पाठक - जन्म: मई 1950, गंगोलीहाट, कुमाऊँ, उत्तरांचल में। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.। कृतियाँ: 'शायद यह अन्तहीन', 'धुन्ध भरा आकाश', 'जो गलत है', 'इन दिनों वे उदास हैं', 'रात के बाद', ‘अपने ही लोग', (सभी कहानी सं

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