Vanshbel

Vijay Author
Paperback
Hindi
8126309830
1st
2004
176
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वंशबेल - विजय ऐसे कथाकार हैं जिनकी कहानियों में भारत की विविधता झलकती है। उनके कथा संसार को भाषा की सरहदें नहीं बाँध पातीं। देश के विभिन्न प्रान्तों के सामान्य लोगों, मध्यवर्गीय परिवार के अस्तित्वगत संघर्षों और उनकी विडम्बनाओं को विजय इस ख़ूबसूरती से उस परिवेश का चित्रण करते हुए रच देते हैं, जैसे वे उन्हीं के सुख-दुख के वर्षों साथी रहे हों। विजय की कहानियों में विषय की विविधता में जीवन के रंग भी हमें कई प्रकार के देखने को मिलते हैं। उनमें मुम्बई की झोंपड़पट्टियों में जीनेवालों की कराह सुनाई पड़ती है तो साम्प्रदायिक लोगों की गुण्डई की आँच भी महसूस होती है। एक तरफ़ गुजरात की त्रासदियों की सिसकारियाँ व्यथित करती हैं तो दूसरी तरफ़ आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिये जाने की पीड़ा भी दिल पर बोझ बनकर उतर आती है। औरत तो अपनी नियति से हर जगह दुखी है चाहे वह गुजरात की हो या राजस्थान की या बंगाल की। विजय की हर कहानी में मानवीय सरोकार स्थान-काल-पात्र के वैविध्य के बावजूद मूल विषय के रूप में ही अभिव्यक्त होते हैं। विजय की कहानियों के पात्र पाठकों के सामने जैसे एक चुनौती के रूप में नज़र आते हैं। वे ज़िन्दगी की सच्चाइयों को सामने लाते हैं और उनसे गुज़रनेवालों को अपने ढंग से समाधान के लिए प्रेरित करते हैं। इस संग्रह की कहानियों को पढ़ते हुए कोई भी जागरूक पाठक अपने को तटस्थ नहीं महसूस कर पायेगा। निश्चित ही ये कहानियाँ पाठक के अनुभव-संसार में कुछ जोड़ेंगी।

विजय (Vijay)

विजय - जन्म: 6 सितम्बर, 1936 को आगरा (उ.प्र.) में। रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन से सेवा निवृत्ति के बाद अब स्वतन्त्र लेखन। प्रकाशित कृतियाँ: कहानी संग्रह—'हथेलियों का मरुस्थल', 'जंगल बबूल का', 'बौ स

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