गणदेवता -
कालजयी बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बन्द्योपाध्याय का उपन्यास गणदेवता संसार के महान उपन्यासों में गणनीय है। इसे भारतीय भाषाओं के लगभग एक सौ प्रतिष्ठित समीक्षक साहित्यकारों के सहयोग से सन् 1925 से 1959 के बीच प्रकाशित समग्र भारतीय साहित्य में 'सर्वश्रेष्ठ' के रूप में चुना गया और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
गणदेवता नये युग के चरण-निक्षेपकाल का गद्यात्मक महाकाव्य है । हृदयग्राही कथा का विस्तार, अविस्मरणीय कथा-शैली के माध्यम से, बंगाल के जिस ग्रामीण अंचल से सम्बद्ध है उसकी गन्ध में समूचे भारत की धरती की महक व्याप्त है। उपन्यास का एक-एक पात्र व्यक्तिगत रूप से अपने सहज जीवन की हिलोर पर तैरता हुआ उठता है और गिरता है; किन्तु सामूहिक रूप से वे सब एक विशाल सागर के उद्दाम ज्वार की भाँति हैं, जो अपने आलोड़न से समूचे युग को उद्वेलित कर देते हैं। कुंठित समाज के नागपाश से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत नर और नारियाँ; नये युग की आकस्मिक चौंध से पदस्खलित, किन्तु महाकाल के नये आह्वान-गीत की बीन पर मन्त्रमुग्ध; भूख और वासना, विध्वंस और हाहाकार के बीच निर्मल संकल्प के साथ बढ़ते हुए गणदेवता के अडिग चरण, एक अबूझ लक्ष्य की खोज में...
जीवन-सत्य के अनुसन्धान की जीवन्त गाथा गणदेवता का प्रस्तुत यह नवीनतम संस्करण बिल्कुल नये रूप में है।
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