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अयोध्या बाबू सनक गए हैं

Paperback
Hindi
9788119014705
1st
2011

अयोध्याबाबू सनक गये हैं - 'अयोध्या बाबू सनक गये हैं' के साथ कहानीकार उमा शंकर चौधरी एक ऐसा नैरेटिव लेकर उपस्थित हुए हैं जो कहानी और नाटक दोनों विधाओं को एक साथ समेट कर चलता है। नेरेटिव की यह ख़ासियत उनकी शीर्षक कहानी में तो है ही, साथ ही इस संग्रह की बाकी दूसरी कहानियों में भी भरपूर मात्रा में मौजूद है। उमा शंकर की लगभग सभी कहानियों की ज़मीन और परिवेश ठेठ गाँव और क़स्बों से उकेरे गये हैं। इसके बावजूद इनके चरित्र अपनी सोच और क्रियाकलापों में पूरी तरह आधुनिक और कभी-कभी अपने वक़्त से आगे के भी जान पड़ते हैं। यद्यपि इन कहानियों में बाहर से कुछ भी ऐसा घटित नहीं होता, जिसे नाटकीय कहा जा सके, लेकिन अपनी आन्तरिक संरचना में कहानियों का ताना-बाना इतने सहज और अनायास रूप से आगे बढ़ता है कि अन्त तक आते-आते कहानियाँ बेहद नाटकीय हो उठती हैं। कई बार तो कहानीकार बहुत ही संयम से पात्रों के बीच पनपते सम्भावित सम्बन्धों की अटकलों को बहुत दूर तक ले जाता है और इस कारण कहानी में यहाँ से वहाँ तक उत्सुकता बची रह जाती हैं। इस बात को रेखांकित करना चाहूँगा कि कहानी लेखन की दुनिया में युवा रचनाकारों द्वारा जो कुछ नया लिखा जा रहा है, वह सचमुच अपने कथ्य और कथ्य से ज़्यादा उसको व्यंजित करने की नयी शैली और संरचना की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि उमा शंकर चौधरी क़िस्सागोई और कहानीपन के मास्टर हैं। उनकी कहानियाँ पाठकों को अपने कहानीपन के बल पर अतल गहराई में लेकर चली जाती हैं। सम्भावनाशील युवा रचनाकार उमा शंकर चौधरी को उनके पहले कहानी-संग्रह के लिए बहुत शुभकामनाएँ।— देवेन्द्र राज अंकुर

उमा शंकर चौधरी Uma Shankar Choudhary

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