समाज आज जिस बदलाव की ताकीद कर रहा है, जिन बेड़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ रहा है मीना ने वो सलासिल, वो बेड़िया आधी सदी से भी ज्यादा पहले तोड़ दी थीं। इस लिहाज से वह एक मायने में पथ प्रदर्शक रही थीं।
मीना के बारे में जितने हक़ीकत बयान है उतने ही अफसाने भी तैरते हैं। उनको लेकर हर इन्सान की अपनी ही कहानी है और हर कहानी का अपना ही अलग जाविया है। कुछ का मकसद महज़ सनसनी फैलाना था और कुछ जाहिराना सच बयानी थी।
कानून का विद्यार्थी, कहीं-न-कहीं कानून की भाषा बोलता ही है। मीना कुमारी यह दुनिया तब छोड़ गर्यो जब मेरे इस दुनिया में आने का कोई इमकान भी आसपास न था लिहाजा उन पर लिखने, उनको जानने और उन तक पहुंचने के लिए मुझे द्वितीयक साक्ष्यों से ही गुज़रना पड़ा। जीवन के कुछ दुखों में से एक दुख वह भी रह ही जायेगा कि काश उनके वक्त में पैदा होने की खुशनसीबी अता होती... काश!
इसलिए... यहाँ दर्ज वातों की सच्चाई का दावा करूँ, यह ठीक नहीं होगा और तारीख़ इन बातों को एक सिरे से नकार दे, झुठला दे ऐसा भी नहीं । में ऐसा कुछ भी नहीं लिख सकता जिसकी चावत कोई लिखित स्रोत नहीं हो और महज़ सनसनी के लिए ऊलजलूल घटनाओं का समावेश कर इसके लिए मेरा मन गवाही नहीं देगा ।....
फिल्म वालों की बदनसीबी यह कि तारीख़ उन पर कभी भी मेहरबान नहीं रही। इस कारण उन पर कोई तारीख़ी किताब नहीं लिखी गयी। ना ही उन्हें तारीख़ में दर्ज होने लायक माना गया। फ़िल्मी अफ़राद की तारीख़ जो है वह अख़वार-ओ-रिसालात ही हैं जिनमें उनकी ज़िन्दगी के अहम पहलू नुमायाँ होते हैं। सो क्या ज़रूरी कि हम उन बातों, उन अख़बारों, उन मैगज़ीनों को सिरे से नकार दें। मसालाई रिसालों की बात दीगर है।
और फिर, मीना कुमारी का पूरा सच सिर्फ और सिर्फ मीना कुमारी ही जानती थी। चाहे फिल्मकार, चाहे नातेदार, चाहे कोई किताब या कोई अदीब, कोई भी यह दावा करे कि वह उनकी कहानी मुकम्मल तौर पर जानता है तो यह झूठ होगा। लिहाज़ा यहाँ लिखी बातें भी फ़साना मान कर पढ़ा जाना ही सही होगा क्योंकि इस किताब में लिखी बातें उतनी ही सच्ची हैं जितनी मीना की बाबत फैले क़िस्से और उतना ही फसाना है जितना मीना की बाबत फैले किस्से।
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