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Yuva Sanyasi

Hardbound
Hindi
NA
1st
1993
78
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₹60.00

युवा सन्यासी - स्वामी विवेकानन्द के बाल्यजीवन से लेकर उनकी समाधि अवस्था तक की प्रमुख घटनाओं का चित्रण करने वाली यह लघु नाट्य-कृति और कुछ नहीं, अध्यात्मप्रेमी रचनाकार की अन्तर्मन की पीड़ा की सहज उद्भावना है। उनके ही शब्द हैं 'आख़िर इस सारी समृद्धि, भागदौड़ या ज्ञान का अर्थ क्या है? हम जिसे विकास कहते हैं क्या वह सही विकास है? हम सब दोहरी ज़िन्दगी जीते हैं। एक संसार है जो हमें मिला है स्वयम्भू सृष्टि। इसी के समानान्तर एक और दुनिया है जो आदमी ने बनायी है। पंख और पहियों और तारों पर भागती, भोग के लिए उकसाती, परिचय को निर्वैयक्तिक करती, एक आयामवाले लोगों को जन्म देती, खाली और खोखली। सच है कि ज़िन्दगी आज जितनी सुविधापरक और रंगीन है पहले कभी नहीं थी, मगर इसी के साथ यह भी सच है कि आज आदमी जितना बेचारा और ग़मगीन है पहले कभी नहीं था। कदाचार सहज और लड़ाई पहले से भी बहुत ज़्यादा भोली मगर खूँख़्वार हो गयी है। पूर्व हो या पश्चिम दुख बढ़ रहा है। कितने उपदेशक आये गये, क्रान्तियाँ हुई लेकिन आदमी जहाँ था वहीं सड़ रहा है। ऐसे वक़्त में विवेकानन्द जैसे संन्यासी, कर्मयोगी बहुत अधिक प्रासंगिक ही जाते हैं। दरअसल यह कृति एक नाटक भी है, जीवनवृत्त भी है और कुछ अर्थों में कहानी भी। एक रूपरेखा जिसका प्रारूप कुछ ऐसा है जो पाठकों से एक विशिष्ट मनोभूमि की अपेक्षा करता है। इसके रचना-शिल्प में एक अच्छी फ़िल्म के सूत्र निहित हैं। सम्भवतः यह कृति लिखी भी इसी उद्देश्य से गयी है। आशा है, हिन्दी के सहृदय पाठकों एवं नाट्यकर्मियों को यह अधिक उपयोगी सिद्ध होगी।

कैलाश वाजपेयी (Kailash Vajpayee)

कैलाश वाजपेयी जन्म : 11 नवम्बर, 1936, उन्नाव निवासी । कार्यक्षेत्र : सन् 1960 में, टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई में नियुक्ति 'सारिका' पत्रिका के प्रकाशन- प्रभारी। जुलाई सन् 1961 में, दिल्ली विश्वविद्यालय के शि

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