Shiksha Mein Shanti

Pramod Jain Author
Hardbound
Hindi
9789390659807
1st
2021
119
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शिक्षा में शांति - शिक्षण के प्रयाग में गंगा शिक्षक भी हैं, यमुना व्यवस्था भी है किन्तु शिक्षा सरस्वती की तरह विलुप्त हो गयी है। आज जीवन के सभी प्रतिमान जैसे सेवा, दान, प्रेम, धर्म आदि के पाये व्यवसायीकरण की आँधी में हिल रहे हैं। इन सबको जो नींव सम्भाल सकती थी, हम उस शिक्षा को ही उखाड़ने में लगे हुए हैं। क़ानून, नीति, नियम आदि हमें रोकने में असफल हो गये हैं। लोक-लाज शर्म से कहीं चुल्लू भर पानी में डूब मर गयी है। आत्मग्लानि से बचने के लिए हम आभासी आइना बना रहे हैं, सम्मान की नयी परिभाषा व मुखौटे गढ़ रहे हैं। प्रस्तुत व्यंग्य आज के समाज का प्रतिबिम्ब हैं, सच्चाई हैं, आचरण हैं, व्यवहार हैं। शिक्षा तो बहाना है, यह सब क़िस्से, विद्रूप, विरोधाभास, व्यंग्य, हास्य एवं तथ्य जीवन के सभी आयामों में फ़िट बैठते हैं। ये व्यंग्य किसी की बुराई के लिए नहीं लिखे हैं बल्कि ये मेरी बेचैनी के विकल सुर हैं कि हम एक ऐसा रास्ता खोजें जो शिक्षा के व्यवसायीकरण होने के बावजूद शिक्षा की अस्मिता व पवित्रता को अक्षुण्ण बनाये रखे।

प्रमोद जैन (Pramod Jain)

डॉ. प्रमोद जैनओशो संन्यासी एवं गोल्ड मेडलिस्ट शिशु विशेषज्ञ हैं। वर्तमान में रीवा में इनका गुरुकृपा हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर है।कृतित्व : व्यंग्य - 'कुर्सीनामा'; गद्य-' -'यादें पिछले जन्मों क

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