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माटी एवं संस्कृति के प्रहरी : भगवान बिरसा -
पुस्तक माटी एवं संस्कृति के प्रहरी : भगवान बिरसा झारखण्डी जनजातीय जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक संघर्षों का उद्घोष है। यह स्मारिका है धरती आवा 'बिरसा' के उन महान संघर्षों की जिसमें उन्होंने तत्कालीन जनजातीय जीवन एवं संस्कृति पर होने वाले ख़तरे की ओर संकेत किया था। आज भी ऐसा ही प्रश्न झारखण्ड एवं देश की जीवन संस्कृति पर खड़ा है और ख़तरे की घण्टी बनकर प्राकृतिक जैव विविधता को नष्ट कर देने की साज़िश में आमादा है। डॉ. युगल झा ने झारखण्डी जीवन-मूल्यों, जिनके कारण धरती के पुरोधाओं ने अपनी शहादत दी है जिसमें भगवान बिरसा का योगदान अप्रतिम है, बहुआयामी प्रभाव वाले उत्प्रेरक तत्त्वों को इस पुस्तक में रेखांकित करने की उत्कृष्ट कोशिश की है। बिरसा मुण्डा के जीवन और कर्म-चिन्तन की पूरी-पूरी व्याख्या है, यह इनकी अनुपम रचना-माटी एवं संस्कृति के प्रहरी : भगवान बिरसा ।
विभिन्न अध्यायों में लिखी गयी इस पुस्तक में स्वतन्त्रता-संग्राम के पूर्व जनजातियों ने अपने स्वशासन एवं देशज सांस्कृतिक चेतना की सुरक्षा में जितने भी आन्दोलन किये हैं, जिनकी अगुवाई इन आदिवासी क्रान्ति पुत्रों ने की है, उसकी चर्चा है। साथ ही अपने सम्पूर्ण राजनीतिक संघर्ष में क्रान्तिकारी बिरसा युगपुरुष की तरह जिन प्रश्नों को उठाया गया है, वह आज भी विकराल मुँह बाये खड़े हैं। आज भी सत्ता और कॉरपोरेट घरानों की मिलीभगत ने झारखण्ड के पर्यावरण, जल-जंगल-ज़मीन व प्राकृतिक संसाधनों पर लूट-पाट की पूरी संस्कृति के साथ कोहराम मचा रखा है। ऐसे ही ज्वलन्त मुद्दों और प्रश्नों को डॉ. युगल झा ने अपनी इस पुस्तक में शोधपूर्ण व्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया है।
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