जो मन टूटा आपना - प्रस्तुत है साहित्य अकादेमी सहित कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित असमिया के सुविख्यात कथाकार का यह उपन्यास 'जो मन टूटा आपना' । मन की अतल गहराइयों में पैठकर उसमें छिपे हर गुण-अवगुण, हर शक्ति, हर कमज़ोरी, हर सुन्दर-असुन्दर को ऊपर निकाल रखने और इस उपक्रम में अपने समकालीन समाज को आँखों-आगे प्रत्यक्ष रख देने की दुर्लभ क्षमता श्री शीलभद्र ने 'जो मन टूटा आपना' में दिखाई है। इस उपन्यास की कथा परिवेशगत यथार्थ की आकार-रेखाओं को उजागर करने के साथ ही उसके भीतर के बहुरंगी अर्थों को भी खोजती और व्यक्त करती है। 'जो मन टूटा आपना' में शीलभद्र जी ने अपने व्यापक अनुभवों की पृष्ठभूमि में व्यक्ति की मानसिक व्यथाओं और आसपास के वातावरण में छायी व्यर्थता का लेखा-जोखा पूरी कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है। दरअसल जीवन की विविधताओं की पड़ताल करता यह उपन्यास अपने चरित्रों और प्रसंगों के माध्यम से जटिल मानवीय सम्बन्धों की एक विलक्षण अभिव्यक्ति है।
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