अथ अगस्त्य कथा - भौतिकी, भाषाविज्ञान और आयकर का समाजशास्त्र—तीन बड़े गवाक्षों से जिन्होंने भारतीय जीवन दर्शन, इतिहास और लोकसंस्कृति की अंगनैया के विविध आयाम गौर से जाँचे-परखे हों—उन अपने गोपाल कमल की क़िस्सागोई, उनके कवित्त और उनकी ज्ञान मीमांसा—तीनों की अलग ही सब-ढब है। वैसे तो हमारे यहाँ आयुर्वेद के समय से ज्ञान-विज्ञान की बातें भी कविता कहानी के आश्रय विकीरित करने की विराट परम्परा रही है, पर पिछली कुछ सदियों में सरस्वती की लुप्तप्राय धारा की तरह यह परम्परा अन्तः सलिला भाव में बही और अब गोपाल कमल अपने हर ग्रन्थ में इसे एक नयी त्वरा के साथ उजागर कर रहे हैं। मिथकों की उलझी जटाएँ सुलझाते हुए भाषिक अवचेतन में दर्ज जो जातीय स्मृतियाँ ये अपने विमर्श में जगाते हैं, उसके भी कई आयाम हैं—पदार्थमयता का आयाम, चेतना का आयाम और अनन्त का आयाम। इतनी गझिन जीवनदृष्टि को अगस्त्य, पाणिनि आदि से लेकर चौमस्की, चौमस्की से लेकर इरेगिरी के 'push and Joy of woman's language' (Lucy Irigaray)' तक ले आने की मेधा कम विद्वानों में पायी जाती है। सरणियों, चित्रों, ग्राफ़ों से सम्पुष्ट कई तरह-तरह की तर्क पद्धतियों के सहारे भाषाओं और संस्कृतियों के बीच का अबोला (communication gap) तोड़ देने का यह महद्संकल्प दिल से दिल तक राह बनाता हुआ चलता है और यह सिद्ध करता हुआ कि गहनतम तल पर सब भाषाएँ एक हैं—'तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रेमन' भाव से बहती हुई!—अनामिका
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