Vaiswik Gaon : Aam Aadmi

Hardbound
Hindi
9788126330461
1st
2012
188
If You are Pathak Manch Member ?

वैश्विक गाँव : आम आदमी - वैश्वीकरण की दुर्जय आँधी ने हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में उगल-पुथल मचा कर रख दी है। हमारी पारम्परिक जीवन पद्धति चर्चा और आचार-व्यवहार में इतना भारी बदलाव आ गया है कि हम अपनी जड़ों से पूरी तरह उखड़ गये हैं। इस बदलाव ने आम आदमी को दिग्भ्रमित कर दिया है। आगे का मार्ग उसे सूझ नहीं रहा है। एक ओर वह वैश्विक गाँव का सम्भ्रान्त नागरिक बनने के 'भरम' में जीता है तो दूसरी ओर अनेक श्रेष्ठ मूल्यों का क्षरण और रिश्तों-नातों की ऊष्मा के रीत जाने की पीड़ा उसे निरन्तर साल रही है। भूमण्डलीकरण ने अनेक ऐसी सौगातें हमें अपने 'महाप्रसाद' के रूप में दे डाली है कि इससे उन्हें न ग्रहण करते बन पड़ रहा है, न छोड़ते। खुले बाज़ार के विदेशी ब्रांडों ने जिस रूप में ऐश्वर्य और भोग का भौंडा प्रदर्शन कर, पूरे मध्यवर्ग को धन-दौलत की जिस अन्ध लालसा में धकेल दिया है, उसने देश में सुरसा के मुख-सा बढ़ता भ्रष्टाचार और कदाचार चहुँ ओर फैला कर सामान्य मनुष्य की ज़िन्दगी की दुश्वार कर दिया है। टी.वी. के सौ से अधिक दहाड़ते चैनलों द्वारा हमें जिस रूप में ग्लोबल गाँव का वासी बनाया जा रहा है, वह दरअसल हमारा अमेरिकी संस्कृति के लिए अनुकूलन है। सौन्दर्य प्रतियोगिताओं और रीयल्टी शोज़ में जिस प्रकार नग्नता परोसी जा रही है, उसमें नारी तन का विरूप प्रदर्शन और उसे मात्र शरीरजीवी बनाने में इतने सारे उपक्रम, शरीर सम्भाल के इतने अधिक प्रभावी विज्ञापनों में बहती पूरी की पूरी पीढ़ी, हमें चिन्ताकुल स्थिति में ला देती है। सोचने को बाध्य हैं कि यह हमारी समृद्धि का विकास है या पतन की आकर्षक पगडण्डियाँ! हमारी साहित्यिक अस्मिता और भाषा संस्कार भी इससे प्रभावित हो रहा है। वैश्विक गाँव की ऐसी दुर्वह स्थितियों ने सामान्य आदमी की ज़िन्दगी को एक विरूप में ढाल दिया है। अपने परिवेश और समय की इन चिन्ताओं-समस्याओं पर प्रसिद्ध आलोचक डॉ.पुष्पपाल सिंह ने अपनी तिलमिलाहट-भरी तीख़ी टिप्पणियों को इन संक्षिप्त आलेखों के रूप में प्रस्तुत किया है। ये टिप्पणियाँ अपने समय के तीख़े सवालों से मुठभेड़ तो करती ही हैं, इनमें स्थितियों के प्रतिरोध का ऐसा स्वर जो हमारी सोच को झिंझोड़ कर एक वैचारिक सम्पन्नता प्रदान करती है। आगे की दिशा प्रशस्त कर आम आदमी को एक नयी सोच से लैस करती हुई जीवन जीने को एक दृष्टि यहाँ मिलती है, वैश्विक गाँव की इन अलामतों से बच सकने की जुगत यहाँ बड़े सकारात्मक रूप से प्रस्तावित है। लेखक की यह आम आदमी तथा साहित्य-कलाओं से सम्बद्ध प्रबुद्ध जनों से सहज भाषा के लालित्य में वैश्विक गाँव से जुड़े अनेक मुद्दों पर विचारप्रेरक सीधी बातचीत है।

पुष्प पाल सिंह (Pushp Pal Singh )

पुष्पपाल सिंह - जन्म: 4 नवम्बर, 1941, भदस्याना (मेरठ, अब ग़ाज़ियाबाद, जनपद, उ.प्र) में। शिक्षा: मेरठ कॉलेज, मेरठ से एम.ए., कलकत्ता विश्वविद्यालय से डी.फिल., जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू से डी.लिट्.। पंजाब

show more details..

My Rating

Log In To Add/edit Rating

You Have To Buy The Product To Give A Review

All Ratings


No Ratings Yet

E-mails (subscribers)

Learn About New Offers And Get More Deals By Joining Our Newsletter