सूखते स्त्रोत - जयनन्दन की कहानियों में जीवन के प्रति रागतत्त्व प्रबल मात्रा में मिलता है मगर यह रागतत्त्व व्यक्ति से कम अपने समय के भूगोल से ज्यादा जुड़ता है। साहित्य को समाज से जोड़ने वाले लेखकों में जयनन्दन की भूमिका किसी से कमतर नहीं आँकी जा सकती। अपने वक़्त की चुनौतियों को महसूस करने की तिलमिलाहट उनकी कहानियों में देखी जा सकती है। समाज को कमज़ोर करने वाले तत्वों और दरारों की ये शिनाख़्त करते हैं और अपने कथाकार के ज़रिये वे उसे सामने लाते हैं। जयनन्दन आज के उन ख़तरों को भी समझते हैं जो पूँजीवादी देशों द्वारा ग़रीब देशों पर थोपे जा रहे हैं। जयनन्दन के कथाशिल्प को इसी दृष्टि से देखना चाहिए कि वे अपनी रचना में कभी कोई 'चमत्कार' नहीं रचते, वे सिर्फ़ परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं। ये कहानियाँ इतनी सहज होती हैं कि पाठकों के लिए अत्यन्त पारदर्शी हो जाती हैं। इसलिए पाठकों को उस ख़तरे को समझने में कोई दिक़्क़त नहीं होती, जिससे जयनन्दन रू-ब-रू होते हैं। समाज-तत्व की प्रधानता के बावजूद ये कहानियाँ स्थूल नहीं हैं, जैसाकि ऐसी कहानियों के बारे में प्रायः समझा जाता है। मानव मन का सूक्ष्म चित्रण तो इनमें है ही, परस्पर विरोधी भावों और विचारधाराओं की कौंध भी व्यंजित होकर कहानी के प्रभाव में वृद्धि करती है।
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