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स्माइल प्लीज़ - सुधांशु की कहानियों में जो बात सबसे ज़्यादा आकर्षित करती है, वह है भावबोध की सघनता। बिना शब्दों, स्थितियों या घटनाओं की बहुलता के, थ्री डाइमेंशन में उकेरी गयी ये कहानियाँ पाठक से परत-दर-परत सोच और समझ की माँग करती हैं। स्माइल प्लीज़, .. और मैं भूल गया और मिसफिट जैसी कहानियाँ अवचेतन की कहानियाँ होने के बावजूद बाहरी दुनिया को देखने और समझने के रास्ते सुझाती हैं। इन कहानियों में परिवेश ही किरदार है। पाठक को इस परिवेश को समझना होगा, कहानियों को डीकोड करना होगा, तभी वह इन कहानियों को समझ पायेगा और इनका आनन्द उठा पायेगा। मैं सुधांशु को 'स्माइल प्लीज़' संग्रह के लिए बधाई और शुभकामनाएँ देती हूँ। उम्मीद करती हूँ कि इन कहानियों में भी पाठक को 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' जैसा स्वाद मिलेगा। —मृदुला गर्ग, वरिष्ठ कथाकार
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