सांस्कृतिक आलोक से संवाद - भारतीय मनीषा और भाव सम्पदा के अग्रणी हिन्दी और संस्कृत के अधिकृत विद्वान पं. विद्यानिवास मिश्र ने अपनी सृजनात्मक उपस्थिति से हिन्दी संसार को एक सांस्कृतिक दीप्ति दी है। शब्द सम्पदा, भाषा शास्त्र, परम्परा और आधुनिकता के अन्तःसम्बन्धों पर उनका कार्य बहुत मूल्यवान है। शास्त्रों को लोक से जोड़ने वाले उनके व्यक्ति व्यंजक निबन्ध दार्शनिक विमर्श और लालित्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। सांस्कृतिक पाण्डित्य से परिपूर्ण मिश्र जी लोक के गहरे पारखी थे। उनके लेखन में दोनों का अद्भुत सामंजस्य था। वे कोरे विद्वान नहीं, जनमानस से जीवन्त संवाद करने वाले लेखक थे। इस पुस्तक में पुष्पिता को दिये साक्षात्कार में पण्डित जी ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, साहित्य, राजनीति आदि विभिन्न मुद्दों पर बेबाक बातचीत की है—सिर्फ़ उन जिज्ञासु पाठकों के लिए नहीं जो कला साहित्य और संस्कृति में रुचि रखते हैं बल्कि विभिन्न विषयों के विद्वानों के लिए भी यह किताब निश्चित रूप से उनकी ज़रूरत बनेगी क्योंकि इस पुस्तक में पण्डित जी का जो चिन्तन व्यक्त हुआ है, वह उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक जीवन का वैचारिक निचोड़ है। इस दृष्टि से यह पुस्तक हिन्दी जगत की अनमोल निधि है। गूढ़ और गम्भीर विषयों पर भी जिस सहजता से पण्डित जी ने अपनी बात कही है उसे पढ़ना बिल्कुल उनको सुनने की तरह है।
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