रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस महात्मन् पुरुष थे। उन्होंने बचपन से ही सादगीपूर्ण जीवन अपनाया और भक्ति-भाव में लीन रहने लगे। लेखक ने अपने स्वाध्याय से इनके जीवन चरित को बड़े ही मनोभाव से लिखा है। रामकृष्ण माँ काली के भक्त थे। 'माँ' के अलावा उन्हें किसी से भी प्रीत नहीं थी। इसलिए विवाह के उपरान्त उन्होंने अपनी जीवन-संगिनी को भी अपने आचरण में ढाल लिया और दोनों मानव-कल्याण के लिए कार्य करने लगे।
लेखक ने रामकृष्ण परमहंस के गूढ़ रहस्यों को बड़े ही सहज शब्दों में रखा है, ताकि इस किताब के हर उम्र के पाठक परमहंस की जीवनी को अपने हृदय में सहज ही उतार सकें। पाठकों की सुविधा के लिए लेखक ने पुस्तक के पूरे विषय को अलग-अलग शीर्षकों में विभक्त किया है। लेखक ने इन शीर्षकों में विभक्त रामकृष्ण परमहंस के जीवन को इस तरह रखा है कि वह सीधे दिल में उतरता चला जाता है। यह पुस्तक निश्चित रूप से युवा पीढ़ी के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
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