Naye Badal

Mohan Rakesh Author
Hardbound
Hindi
9789357757812
4th
2024
140
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नये बादल -

नये बादल कथाकार मोहन राकेश का प्रतिनिधि कहानी-संग्रह है। 1957 ई. में इसका प्रथम संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ था। इसमें संगृहीत सोलह कहानियों ने हिन्दी कहानी को एक नयी ऊर्जा प्रदान की थी। आज तक उत्कृष्ट हिन्दी कहानियों की चर्चा होने पर 'उसकी रोटी', 'मलबे का मालिक', नये बादल', 'अपरिचित' और 'सीमाएँ' जैसी कहानियाँ उद्धृत की जाती हैं। देश विभाजन की महात्रासदी और मानव-नियति के दारुण संघर्ष को चित्रित करने वाली रचना 'मलबे का मालिक' तो हिन्दी की कालजयी कहानी मानी जाती है। नये बादल की भूमिका में लेखकीय दायित्व का उल्लेख करते हुए मोहन राकेश कहते हैं, “... हमारी पीढ़ी ने यथार्थ के अपेक्षाकृत ठहरे हुए अर्थात वैयक्तिक और पारिवारिक रूप को अपनी रचनाओं में अधिक स्थान दिया है। निरन्तर कुलबुलाते और संघर्ष करते हुए सामाजिक पार्श्व का एक व्यापक भाग अक्रूरता रहा है, जिसकी पहचान और पकड़ हमारे लेखकीय दायित्व का अंग है ।" स्वयं राकेश ने इस दायित्व का निर्वाह भली प्रकार किया है, ऐसा इस संग्रह की कहानियों के आधार पर (भी) कहा जा सकता है। राकेश की ये कहानियाँ वर्तमान हिन्दी कहानी के तमाम विमर्शों की ज़मीन तैयार करने में अपनी भूमिका निभा चुकी हैं। 'उसकी रोटी' की बालो की जीवन-गाथा में समकालीन स्त्री-विमर्श के कई आयाम पढ़े जा सकते हैं। 'सीमाएँ' को भी इस सन्दर्भ में जोड़ सकते हैं। मोहन राकेश इस कहानी के प्रारम्भ में लिखते हैं, “इतना बड़ा घर था, खाने पहनने और हर तरह की सुविधा थी, फिर भी उमा के जीवन में एक बहुत बड़ा अभाव था जिसे कोई चीज़ नहीं भर सकती थी।" जीवन के स्वभाव और अभाव का अंकन करने में मोहन राकेश बेजोड़ हैं।

प्रस्तुत है नये बादल का पुनर्नवा संस्करण ।

मोहन राकेश (Mohan Rakesh)

मोहन राकेश जन्म : 8 जनवरी, 1925; जडीवाली गली, अमृतसर (पंजाब) |शिक्षा : संस्कृत में शास्त्री, अंग्रेज़ी में बी. ए. । संस्कृत और हिन्दी में एम. ए. ।जीविका के लिए लाहौर, मुम्बई, शिमला, जालन्धर और दिल्ली में अ

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