मेरी साहित्य यात्रा - भीष्म साहनी का सारा कृतित्व हिन्दी भाषा में है, केवल यह साहित्य यात्रा ही मूलतः पंजाबी में प्रकाशित हुई थी। जो सहजता और सरलता भीष्म साहनी की कृतियों में पायी जाती है वही इस आत्मकथा में है। सहजता से ही बहुत गहरी बात कह जाते हैं। छः दशक की लम्बी साहित्यिक यात्रा को इस संक्षिप्त पर अत्यन्त समृद्ध वृत्तान्त में बाँध पाना अपने आप में एक विलक्षण उपलब्धि है। लेकिन इस यात्रा का प्रारम्भ उससे भी कहीं पहले हो जाता है—इसके पहले क़दमों से—बचपन में ग्रहण किये हुए संस्कारों और अनुभवों से, जिनका भीष्म साहनी के अनुसार, लेखक की संवेदना पर गहरा असर होता है। उनके पारिवारिक जीवन की रिश्तों की कितनी ही अंतरंग झलकियाँ मिलती हैं इस साहित्य यात्रा में। बचपन से ही उनका जिज्ञासु मन समाज के विरोधाभासों पर सवाल उठाता था। समाज की विसंगतियों और विडम्बनाओं पर उठते सवाल ही शायद उन्हें लिखने को बाध्य कर देते थे। इस सृजनात्मक प्रतिभा की साहित्यिक यात्रा एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी बनती जाती है। 'नई कहानियाँ' का सम्पादन, प्रगतिशील लेखक संघ की गतिविधियाँ और अपने सक्रिय रचनाकाल आदि की जब भीष्म साहनी चर्चा करते हैं तो साहित्यिक आत्मकथा देश का सांस्कृतिक इतिहास भी बन जाती है। उपनिवेशक माहौल, स्वतन्त्रता संग्राम की लहर, स्वतन्त्रता के बाद का संघर्ष आदि—सामाजिक और राजनैतिक परिवेश पर कितने ही झरोखे खुलते जाते हैं। अपने जीवन के छोटे-बड़े क़िस्से बयान करते हुए भीष्म साहनी एक दार्शनिक और सामाजिक चिन्तक के रूप में उभरते हैं। हास्य और व्यंग्य निरन्तर इस गाथा में नयी ऊर्जा भरते हैं। पर वह हँसाते हैं तो अपने ऊपर ही व्यंग्य कस कर और अपनी ग़लतियों को पाठकों के साथ साझा करके। बचपन से कॉलेज के दिनों तक, कालेज के रंगमंच से इप्टा के रंगमंच तक, अध्यापन से मास्को प्रवास में अनुवाद तक, अपनी पहली साहित्यिक कहानी से कई विशिष्ट कृतियों की शुरूआत और रचना-प्रक्रिया तक : गागर में सागर भरती है यह संक्षिप्त, लेकिन अत्यन्त गहन, आत्मकथा।
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