महापण्डित राहुल सांकृत्यायन की अनन्त इच्छा-शक्ति और अनथक परिश्रम का एक और अद्वितीय प्रतिफल है दो खण्डों में प्रकाशित उनका यह यात्रा-वृत्तान्त 'हिमाचल' । साहित्य-प्रेमी पाठकों के लिए ऐतिहासिक महत्त्व की यह पुस्तक पहली बार प्रकाशित हो रही है और इसके प्रकाशन का मूल्य - महत्त्व इसलिए और भी अधिक है कि महापण्डित राहुल के जन्मशती वर्ष में प्रकाशित होने वाले साहित्य में सम्भवतः यह एकमात्र मौलिक सम्पूर्ण ग्रन्थ है, जो पाठकों को पहली बार उपलब्ध हो रहा है।
राहुल जी के इस यात्रा-वृत्तान्त में समग्र हिमाचल प्रान्तर के इतिहास, भूगोल, पुरातत्त्व, धर्म, संस्कृति तथा वहाँ के सामाजिक-आर्थिक परिवेश, लोकजीवन और वनों, पहाड़ों आदि का ऐसा प्रामाणिक और सघन वर्णन है जो, निस्सन्देह, अन्यत्र दुर्लभ है। शायद बहुरंगी हिमाचल की इतनी चैतन्य सांस्कृतिक परिक्रमा राहुल के ही वश की बात थी। विराट् फलक पर इस अद्भुत मनोहारी हिमाचल यात्राकथा को महापण्डित ने बड़े मनोयोग से जिया, भोगा और लिखा है। विश्वास है, हिन्दी का पाठक-समाज राहुल जी के इस अनुपम अवदान का स्वागत करेगा।
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