लयबद्ध -
तमिल की प्रसिद्ध लेखिका लक्ष्मी कण्णन की ये कहानियाँ समग्र रूप से उन साहित्यिक मूल्यों को वहन करती हैं जो पिछले कई दशकों से कथा-विधा के इतिहास में बहस तलब के केन्द्र रहे हैं। दूसरे भाषा प्रदेश से जब कोई प्रतिभा उन्हीं मूल्यों के उत्कर्ष को दिखाती हुई पनपती है तो रचनात्मकता के मूलाधारों को देखकर हमारा चित्तन वृत्त पूरा होता है। साहित्य द्वारा उपार्जित सांस्कृतिक परिदृश्य किसी थोपे गये या ओढ़े हुए आदर्शवाद का मोहताज़ नहीं। वह अपनी ताक़त अपने मूल स्रोतों से लेता है। इस दृष्टिकोण से लक्ष्मी कण्णन की कहानियाँ सार्थक और संगत हैं।
जिन विशिष्ट तत्वों पर अनायास ध्यान जाता है वह है लक्ष्मी की साहित्यिक संवेदना का प्रकार, भाषा की अनूठी लयात्मकता, आत्मबोध की संश्लिष्टता और संस्कार सघनता। परम्परा की प्रवाहिणी में से सहज स्वाभाविक रूप से गुज़रती हुई ये कहानियाँ अपने आसपास के जीवन का निरीक्षण करती चलती हैं। अपने प्रदेश और परिवेश की पहचान इनमें इतनी गहरी है कि परिवेश ही कहानी की देह बन गया है। इस देह में जो संवेदना-प्रवण आत्मा बसती है वह विषयवस्तु की सभी सूक्ष्मताओं को एक सांगीतिक भाषा में बाँधती चलती है। अमूर्त और मूर्त, स्थूल और सूक्ष्म के संयोजन की एक गहरी रचनात्मक समझ इन कहानियों में लक्षित होती है।
वर्षों पहले जब इस पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था तो हिन्दी पाठकों ने बड़े उत्साह से इसका स्वागत किया था। हिन्दी पाठकों को समर्पित है 'लयबद्ध' का नया संस्करण।
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