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कथा संस्कृति - विश्व की संस्कृतियों, सभ्यताओं और इतिहासों से गुज़रते हुए कहानी ने जो-जो रूप लिए, यदि उन्हें मानव विकास से जोड़ा जाये तो सहज ही ज्ञात होगा कि आदमी की लौकिक और पारलौकिक आकांक्षाओं को कहानी ने ही वाणी दी है। भारत संसार का प्रथम और सर्वश्रेष्ठ कथापीठ रहा है। यहाँ के वेदोपनिषद्, पुराण, महाभारत, रामायण आदि महाग्रन्थ असंख्य कहानियों के कोषागार हैं। ये कथाएँ भले ही तत्कालीन समाज को ध्यान में रखकर लिखी गयी हों, किन्तु उनके सामाजिक और मानवीय मूल्य आज भी उपादेय हैं। भारतीय कथा संस्कृति का विकास और समृद्धि जैन आगम कथाओं, बुद्ध की जातक कथाओं और थेरी गाथाओं से भी हुई है। इसी तरह पंचतन्त्र और हितोपदेश ऐसी नैतिक कथाओं के आगार हैं जिन्होंने भारत ही नहीं, विश्व भर को प्रभावित किया है। पंचतन्त्र और हितोपदेश की कथा संस्कृति जहाँ भूमध्य सागर के उत्तरी अफ्रीका, स्पेन, इटली, ग्रीस और सारे मध्य यूरोप में फैली है वहीं जातक कथा संस्कृति ने चीन, जापान, वर्मा आदि देशों में अपना विस्तार पाया है। प्राचीन सभ्यता वाले इन देशों में मिथक-कथा, दन्त-कथा और लोक-कथा का अपना भी एक सुदीर्घ इतिहास है। इसे ध्यान में रखकर प्रस्तुत ग्रन्थ के संचयनकर्ता और सम्पादक यशस्वी कथाकार कमलेश्वर ने इसमें प्राचीन चुनिन्दा वैदेशिक कथाएँ भी शामिल की हैं। साथ ही कुछेक कालजयी आधुनिक कहानियाँ भी। कथा-परिशिष्ट के रूप में फ़िरदौसी, तेमूरलंग, डॉ. वर्नर, वाल्तेयर, रिचर्ड वर्टन, तॉल्स्तॉय, मोपासां जैसे महान साहित्यकारों की भारत सम्बन्धी दुर्लभ यात्रा कथाओं को संकलित किया है। इस तरह इस संचयन में सच्चे अर्थों में भूमण्डलीकरण हुआ है। पाठकों को समर्पित हैं भारतीय ज्ञानपीठ के इस गौरव ग्रन्थ 'कथा संस्कृति' का नवीन संस्करण।
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