जंक्शन - चन्दन पाण्डेय मेरे प्रिय समकालीन कथाकार हैं। 'भूलना' और 'इश्क़फ़रेब' के बाद यह उनका तीसरा कहानी-संग्रह है। चन्दन के यहाँ, उनके बाक़ी समकालीनों (इसमें मेरी भी शमूलियत हैं) के विपरीत विषय की विविधता है और विषय के अनुरूप विविध रेंज भी। यह कुछ ऐसा, मानो किसी कहानी को उन्होंने फ़र्स्ट गियर में लिखा, तो किसी को फ़ोर्थ गियर में। मेरे कहने का आशय यह कि चन्दन की प्रत्येक कहानी चन्दन को बतौर कहानीकार थोड़ा 'नया' करती चलती है। इस संग्रह की कई कहानियाँ आपको चौंकायेंगी। अपने नयेपन से नहीं— लेखक ने वस्तु के स्तर पर कुछ नहीं कह दिया, बल्कि इसलिए कि लेखक ने आपके देखे-सुने व बिसरा दिये गये यथार्थ को पुनः नये ढंग से देखा व दिखाया। 'ज़मीन अपनी तो थी', 'मित्र की उदासी', 'जंक्शन' ऐसी ही कहानियाँ हैं। 'कवि' बहुत गूढ़ कहानी है जिसमें संगुम्फित सचाई व द्वन्द्व से हम पढ़ाई-लिखाई करने वाले बारहाँ दो-चार-छः होते हैं। पठनीयता इन कहानियों की सबसे बड़ी विशिष्टता है। लेखक गम्भीर बात तरल ज़ुबान (इसे 'शीरींज़ुबान' न पढ़ें) से कह जाता है। अपने समकाल का सच रचता यह संग्रह नितान्त संग्रहणीय है।—कुणाल सिंह
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