ईस्ट इंडिया कम्पनी - 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' पंकज सुबीर का कहानी संग्रह है। कहानियाँ अगर अनुभव और परख के धरातल से उपजी हो तो हमें अपने कहानीपन में बाँधने के लिए उन्हें किसी कथा युक्ति का सहारा नहीं लेना पड़ता। कुछ ऐसे ही अनुभवों को अपने कहानी संग्रह में समेटा है पंकज सुबीर ने। इन्हें पढ़ते हुए सचमुच ऐसा ही लगता है कि हमारे लिए ये सारी गौण लगने वाली घटनाएँ हर दिन, हर पल हमारे आस-पास ही तो चुपके-चुपके घट जाती हैं। जीवन की तमाम आपाधापी में अकसर हम उनके प्रति उदासीन रह जाते हैं जब तक कि कोई हमारी आँखों में उँगली डालकर न दिखा दे। स्वार्थपरता की कई तस्वीरें पंकज सुबीर हमारे सामने बेबाकी से पेश करते हैं—धर्म निरपेक्ष देश की नकली धर्म निरपेक्षता हो या महानगरों में रोज़ी-रोटी की तलाश में गाँवों से आये आम लोगों की दुश्वारियाँ हों या फिर कार्यालय में उच्चपदस्थों और निम्नपदस्थों के बीच का तनाव। उँगली पकड़ने का अवसर मिलते ही लोग कैसे पहुँचा पकड़ने की कोशिश में जुट जाते हैं। ऐसी मानसिकता कैसे आज पूरे देश में फैलती जा रही है इसे पंकज ने अपने इस संग्रह की शीर्षक कहानी 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' के द्वारा बड़ी आसानी से चित्रित कर दिया है। अपनी कहानियों में पंकज सुबीर कहीं भी चूकते नज़र नहीं आते। हर कहानी अपने आप में ताज़गी लिये है। नव्यतम सिद्धियों से युक्त यह कहानी संग्रह निश्चित रूप से पठनीय-संग्रहणीय है।
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