दासता के बारह बरस -
यह एक अश्वेत अमेरिकी सोलोमन नार्थअप की दिल दहलाने वाली आपबीती है। सोलोमन वाशिंगटन में रहनेवाले एक स्वतन्त्र नागरिक थे। क़रीब 175 साल पहले उनका अपहरण करके उन्हें दास प्रथा वाले दक्षिणी इलाक़े में बेच दिया गया था। बारह साल तक अपने घर-परिवार से बहुत दूर एक दास के रूप में उन्होंने भयानक शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ झेलीं। लेकिन मानना पड़ेगा कि इस कुप्रथा का सबसे ज्यादा दंश अफ्रीकियों ने झेला है। अपनी काली चमड़ी की वजह से उन्हें हर जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ा।
सोलोमन के संस्मरणों की ये पुस्तक इतनी अवधि बीत जाने के बावजूद इसीलिए प्रासंगिक बनी हुई है कि इतने अरसे बाद हॉलीवुड में उस पर फ़िल्म बनती है, जिसे नौ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया जाता है और गोल्डन ग्लोब अवार्ड से भी नवाज़ा जाता है।
'दासता के बारह बरस' एक दास का भोगा हुआ यथार्थ हैं, जिसमें भावनाएँ हैं, संवेदनाएँ हैं, स्वतन्त्रता गँवाने की पीड़ा है, परिवार से बिछड़ने का दुख है और घोर अन्याय एवं अत्याचारों से उपजा आक्रोश भी है, मगर जो कुछ भी है वह सौ फ़ीसदी खरा सच है।
इस पढ़ते हुए भारतीय पाठक उन दलितों के दुख का भी अनुभव कर सकते हैं जो जाति प्रथा की वजह से आज भी अपमान और भेदभाव झेल रहे हैं। उन आदिवासी समुदायों की पीड़ा को भी इसके ज़रिये समझा जा सकता है जो उसी तरह से शोषक वर्ग के लालच का शिकार हुए हैं और आज भी हो रहे हैं।
अन्तिम आवरण पृष्ठ -
बारह साल तक एक दास के रूप में भीषण यातनाएँ झेलनेवाले सोलोमन नॉथअप की दर्द भरी दास्तान दास प्रथा की ख़ौफ़नाक सचाईयों से रू-ब-रू कराती है। क़रीब 175 साल पुरानी इस आपबीती पर हॉलीवुड में फ़िल्म बनी, जिसे दुनिया भर में देखा और सराहा गया। इस फ़िल्म को नौ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया और सर्वश्रेष्ठ चलचित्र के लिए गोल्डन ग्लोब पुरस्कार से भी नवाज़ा गया।
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