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सिने संसार और पत्रकारिता - सिनेसंसार और पत्रकारिता वस्तुतः रामकृष्ण के आत्मवृत्त का पूर्वार्द्ध है। इसका उत्तरार्द्ध फ़िल्मी जगत में अर्धशती का रोमांच के नाम से सन् 2003 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। लेखक-पत्रकार रामकृष्ण की क़लम मात्र लिखती नहीं बोलती भी है। उसके द्वारा प्रस्तुत पात्र आपकी आँखों के सामने से इस तेज़ी के साथ फिसलते रहते हैं कि आपको पता ही नहीं चल पाता कि कब पहला गया और दूसरे ने उसकी जगह ले ली—बिल्कुल फ़िल्मी परदे की तरह, बोलने बतियाने की शैली में अपने संस्मरणों को लिपिबद्ध करना रामकृष्ण की विशेषता है। इसी से उनका रचनाशिल्प पाठक को उबाता नहीं, उसे लगता है जैसे उनके अनुभव उसके अपने अनुभव हैं, उनकी यादें उसकी अपनी यादें। प्रस्तुत पुस्तक में जहाँ रामकृष्ण की संघर्ष यात्रा का हर सोपान अपनी कहानी ख़ुद कहता है, वहीं लेखक ने फ़िल्म जगत के उन चरित्रों को भी जीवित-जाग्रत रूप में उपस्थित करने का प्रयत्न किया है जिनका अपने ज़माने में असाधारण महत्त्व था। फिर भी उस समय के फ़िल्मकार हो या कालजयी गीतकार—सभी की दुर्लभ झलकियाँ इसमें मिलेंगी। पड़ोसी देश पाकिस्तान के फ़िल्मी धरातल का आकलन भी इसके माध्यम से बख़ूबी किया जा सकता है। मात्र फ़िल्म जगत ही नहीं, देश की अन्यान्य विधाओं का श्रेष्ठिवर्ग भी रामकृष्ण की स्मृतिरेखाओं से अछूता नहीं रह पाया है। आचार्य नरेन्द्रदेव, सम्पूर्णानन्द, वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, कृष्ण मेनन और फ़ीरोज गाँधी जैसे राजनेताओं और समाजवेत्ताओं के अतिरिक्त पुस्तक में अमृतलाल नागर, धर्मवीर भारती और अक्षयकुमार जैन जैसे मसिजीवियों के अन्तरंग भी हैं।
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