अगले अँधेरे तक - हिन्दी कहानी में विज्ञान के अनुशासनों से आने वाले लेखकों में जितेन्द्र भाटिया सबसे महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ अपनी संरचना में 'फ़ार्म इन फोर्स' की सार्थक अन्विति लगती हैं। इनमं भाषा के भीतर की कोई अनियन्त्रित आकुलता नज़र आती है, जिसे सुविचारित ढंग से वे आकार देते रहते हैं। प्रस्तुत संकलन के लिए चुनी गयी जितेन्द्र भाटिया की इधर की कहानियों में उनका एक दूसरा, अलबत्ता कहना चाहिए, अधिक गम्भीर और विवेकशील रूप दिखाई देता है। इनमें उनकी पिछली कहानियों की तरह महानगर और उसका संश्लिष्ट यथार्थ तो उसी तरह बरकरार है, लेकिन एक दृष्टि से इनमें कहीं ज़्यादा सार्थकता और विविधता है। जितेन्द्र के भीतर एक ऐसे बेचैन कथाकार की आत्मा मौजूद है जो दुनिया को एकध्रुवीय बनाने तथा उसके जाल को बिछाने वाली ताक़तों को बहुत क़रीब से देखता और समझता है। ये कहानियाँ अपने ढंग की ऐसी अलग कहानियाँ हैं, जो कथा-प्रयोगों की मारामारी के बीच भी अपनी पाठनीयता से पाठक का ध्यान आकर्षित करती हैं। जितेन्द्र भाटिया की ये कहानियाँ अपने वक़्त से संवाद करने के साथ ही उन नुक्तों का भी विश्लेषण करती हैं जिनसे जीवन का कार्य व्यवहार संचालित होता है। उनमें चेतना-विहीन समय में चेतना जगाने के साथ ही, लेखक के शब्दों में, 'आदमी की ज़मीन के आख़िरी बेशक़ीमती टुकड़े' को बचाने की ईमानदार कोशिश भी नज़र आती है।
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