अशोक वाजपेयी पचास वर्ष से अधिक कविता में सक्रिय रहे हैं और आज हिन्दी कविता में उनकी अलग और रोशन जगह है। अपने को 'संसार का गुणगायक' और कविता का निर्लज्ज पक्षधर कहनेवाले इस कवि ने घर-परिवार, प्रकृति, कलाओं, मृत्यु, प्रेम आदि पर लिखा है। वे न केवल मूर्धन्य हिन्दी कवि आलोचक, अनुवादक, सम्पादक हैं बल्कि भारत की एक बड़ी सांस्कृतिक उपस्थिति भी हैं । कविता की 13 पुस्तकों, आलोचना की 7 पुस्तकों और अंग्रेजी में कला पर 3 पुस्तकों सहित उन्हें संस्कृति के विशिष्ट प्रसारक और नवोन्मेषी संस्था निर्माता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय और विदेशी संस्कृतियों के मध्य परस्पर जागरूकता और आपसी संवाद को बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया है। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सम्पादक के रूप में उन्होंने कविता और आलोचना में युवा प्रतिभाओं और समकालीन तथा शास्त्रीय कलाओं की आलोचनात्मक जागरूकता का प्रसार करने के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। वे साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, दृश्यकलाओं, लोक एवं जनजातीय कलाओं, सिनेमा आदि से सम्बन्धित हजारों कार्यक्रमों के आयोजक रहे हैं। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, दयावती कवि शेखर सम्मान, भारत भारती और कबीर सम्मान प्रदान किये गये हैं । उनके काव्य संकलनों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रांसीसी, पोलिश, उर्दू, बांग्ला, गुजराती, मराठी और राजस्थानी में हुए हैं।
भारत के एक विशिष्ट बुद्धिजीवी श्री वाजपेयी एक सृजनात्मक विश्व पर्यटक हैं, जिन्होंने सम्मेलनों में भाग लेने, व्याख्यान देने के क्रम में कई बार यूरोप आदि का भ्रमण किया है। उन्होंने पोलैण्ड के चार प्रमुख कवियों-चेस्लाव मीलोष, वीस्वावा षिम्बोस्क, ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त और तादेऊष रूज़ेविच की कृतियों का हिन्दी अनुवाद किया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त होने के बाद वह दिल्ली में रह रहे हैं। उन्हें पोलैण्ड गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा और फ्रांसीसी सरकार द्वारा अपने उच्च सिविल सम्मानों से विभूषित किया गया है।
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