पहाड़ से उतरते हुए -
योजना रावत की कहानियाँ उन कहानियों से हटकर हैं जो जबर्दस्ती किसी तात्कालिक विमर्श के अन्तर्गत लिखी जा रही हैं। आदमी और औरत इस युग्मपोषी संसार के दो ऐसे आधार हैं जिनसे दुनिया सिर्फ़ बढ़ती ही रहती है, वह भी हर अर्थ में। बहुत सलीके से योजना रावत ने इन दो ज़रूरी आधारों की चर्याओं के वे पक्ष लिए हैं जो संवेद्य हैं। उनमें मनुष्य की ज़रूरी आकांक्षाओं की गिनती नहीं की गयी है बल्कि उस इयत्ता को रेखांकित किया गया है जहाँ से बढ़ोतरी और पतन के दो रास्तों का निर्माण होता है। उनके निर्माता ख़ुद आदमी और औरत हैं। वे अपनी आदमीयत और औरतपने में अगर ज़िम्मेदार निकलते हैं तो दुनिया की बढ़ोतरी के रास्तों का सृजन करते हैं अगर वे ग़ैर-ज़िम्मेदार, स्वार्थी, पर-हत्यारे निकलते हैं तो ज़ाहिर है वे ऐसी स्थितियों को पैदा करते हैं जिनसे सृष्टि की अवधारणा नष्ट होती है। परन्तु योजना रावत ने रचनात्मक कौशल से एक नये विकल्प के सृजन की ओर क़दम बढ़ाया है उन्होंने जीव सृष्टि के मनोमार्गीय संकल्पों के लिए भी जगह रखी है और अपनी कथाओं के भीतर यह उम्मीद जगाये रखी है कि प्यार, निराशा, टूटन, क्षुब्धता और गुस्सा कभी-कभी रचनात्मक भूमिका भी निभाता है कभी-कभी वह विनाश के रास्ते भी खोल डालता है। मोटे तौर पर आदमी और औरत की कमज़ोरियाँ उनके भीतर अवसाद और त्रास की जो लहर प्रवाहित कर डालती हैं उनका एक बड़ा हिस्सा अभी अछूता ही पड़ा रहता है। उसे टोहने का काम ये कहानियाँ अपनी आधुनिकता की यात्रा से उत्तर आधुनिक समाजों के बीच पूरा करती हैं- पूरा इस अर्थ में कि अन्तर्निहित अनाकारों को आकृति तो सामाजिक भावाधारों में ही हासिल होगी......
-गंगा प्रसाद विमल
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