समाजी और सियासी ताक़तों ने बड़े पैमाने पर हमारे नज़रिये और उस तहरीक को एक शक्ल दी है जिसे आज हमने फेमिनिज़्म या हुकूक-ए-निस्वा का नाम दिया है। भले ही परिभाषाएँ अलग-अलग हों, लेकिन ज़्यादातर लोग इस बात से इत्तिफाक करते होंगे कि ये तहरीक मर्द और औरत में समानता की बात करती है। मुआशरें' में चली आ रही एक सदियों पुरानी ग़लत रिवायत की दुरुस्ती जिसमें औरतों को या जिन्हें सिमोन द बोउवा (Simone De Beauvoir) ने द सेकेंड सेक्स या नज़रअन्दाज़ औरतें कहा है, कमतर समझा गया है जो मर्दों के निस्बत परिभाषित की जा रही औरतों के खिलाफ सरासर नाइंसाफी है। बोउवा के 'द सेकेंड सेक्स' के बाद के सत्तर सालों के दौरान, लिंग और लैंगिकता ने कई बहस-मुबाहिसों को जन्म दिया है और मर्द तथा औरत के बीच की बराबरी आज भी बहस का मरकज़ बनी हुई है।
- पेश लफ़्ज़ से
रख़्शंदा जलील (Rakhshanda Jalil )
रख़्शंदा जलील रख़्शंदा जलील लेखक, अनुवादक, आलोचक और साहित्यिक इतिहासकार हैं। इनके अनेक अनुवाद संकलन, बौद्धिक आलेख व पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इन्होंने 'प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट एज़ रि
परवीन शाकिर (1952-1994)
सैयदा परवीन शाकिर का जन्म 24 नवम्बर, 1952 को कराची, सिन्ध, पाकिस्तान में हुआ।
परवीन शाकिर एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं।
वे उर्दू श