Comrade Monaliza Tatha Anya Sansmaran

Hardbound
Hindi
9789350721445
1st
2012
232
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साठोत्तरी पीढ़ी में रवीन्द्र कालिया अकेले ऐसे लेखक हैं जो अपने विट, ह्यमर और अपनी खुशमिजाजी के लिए जाने जाते हैं। उनके ठहाके तो साहित्य जगत में मशहूर हैं ही, लेखन में भी उनकी चुटकियाँ लोगों को तिलमिलाते हुए मुस्कराने को मजबूर कर देती हैं। संगति में असंगति खोजना उनकी कला है और यह कला उनकी कहानियों और संस्मरणों दोनों में अपने शिखर पर पहुँची है। ट्रैजिक स्थितियों का कॉमिक चित्रण करते हुए वे अपने समय के सत्य से साक्षात्कार करते हैं। 'कामरेड मोनालिज़ा तथा अन्य संस्मरण' पुस्तक में उन्होंने ज्यादातर अपनी पीढ़ी के लेखकों पर संस्मरण लिखे हैं जो व्यक्तिचित्र के साथ-साथ सामाजिक असंगतियों के भी चित्र हैं। ये संस्मरण इस बात के भी गवाह हैं कि साठ की पीढ़ी के लेखकों के आपसी रिश्तों के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ज्यादातर संस्मरण इलाहाबाद के दौर के हैं जिनमें इलाहाबाद पूरी जिन्दादिली के साथ ठहाके लगाता दिखता है। संस्मरणों के मामले में उर्दू में मंटो का जवाब नहीं था इसलिए कि मंटो जिसके बारे में भी लिखते थे निधड़क होकर लिखते थे। हिन्दी में इस मामले में रवीन्द्र कालिया का भी जवाब नहीं है। इन संस्मरणों में वे दूसरों से ज्यादा अपने प्रति निर्मम हैं और यही इन संस्मरणों की सबसे बड़ी विशेषता है। हिन्दी साहित्य का एक पूरा दौर इन संस्मरणों में खिलता-खुलता है। यहाँ ज्ञानरंजन की फक्कड़ी है, तो अमरकान्त की संजीदगी भी, मोहन राकेश, श्रीलाल शुक्ल, कमलेश्वर, धर्मवीर भारती, कन्हैयालाल नन्दन, दूधनाथ सिंह, काशीनाथ सिंह, ममता कालिया, कुमार विकल, जगजीत सिंह, सतीश जमाली, गिरिराज किशोर, उपेन्द्रनाथ अश्क के अलावा बम्बई औरजालन्धर की तमाम दोस्तियाँ और यादें इन संस्मरणों को इस पूरे दौर का एक खास दस्तावेज बना देती हैं। रवीन्द्र कालिया के इन संस्मरणों की एक दूसरी विशेषता उनकी संजीदगी है। वे अक्सर मजाक-मजाक में बहुत संजीदा बात कह जाते हैं। दरअसल, वे अपनी दोस्तियों के बहाने अपने समय को याद करते हैं और उस समय की राजनीति और उससे पैदा हुए मोहभंग को भी। मोहभंग अब एक मुहावरा बन गया है, लेकिन मोहभंग दरअसल होता क्या है, यह इन संस्मरणों से पता चलता है। इलाहाबाद के ज्ञानरंजन, अमरकान्त, दूधनाथ सिंह, सतीश जमाली, नीलाभ, गिरिराज किशोर, श्रीलाल शुक्ल और ममता कालिया इस किताब के खास चरित्र हैं जिनके जरिए उस जमाने का इलाहाबाद का साहित्यिक चेहरा दिखता है। पत्नी जो कभी प्रेमिका भी रही हो उस पर संस्मरण लिखना सबसे मुश्किल काम है, लेकिन कालियाजी ने इन संस्मरणों में इस मुश्किल काम को भी बखूबी अंजाम दिया है। और ये काम पत्नी को (जो खुद भी मकबूल लेखिका हो) बिना प्रेमिका बनाए हो नहीं सकता और इस काम को कालियाजी आज भी बखूबी अंजाम दे रहे हैं। यह किताब इस बात का भी प्रमाण है।


- शशिभूषण द्विवेदी

रवीन्द्र कालिया (Ravindra Kalia)

रवीन्द्र कालिया जन्म : जालन्धर, 1938निधन : दिल्ली, 2016रवीन्द्र कालिया का रचना संसारकहानी संग्रह व संकलन : नौ साल छोटी पत्नी, काला रजिस्टर, गरीबी हटाओ, बाँकेलाल, गली कूचे, चकैया नीम, सत्ताइस साल की उम

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