Sudin

Shashank Author
Hardbound
Hindi
9789387889415
1st
2019
264
If You are Pathak Manch Member ?

'नल न होता तो बात न होती। बिल न होता तो बात न होती। बस, जम्हाइयाँ। केवल वही होतीं। धूप का रंग रूखा होने लगता। दीवार पर जमे-जमे। इन्हीं रँगी हुई दीवारों पर अचानक बन्दर आने लगते । धपू-धम्! वे ऊँचे पेड़ की डगाल पर सबसे पहले दिखलाई पड़ते। पेड़ सिहर जाता। सोते हुए आदमी टूटी नींद से सिहरन ले आता है। डगाल मगर खुशी से लचकती। वे उन पर झूला झूलते। मुहल्ले की ऊँची छतों पर वे फैल जाते। सिनेमाघर की सबसे ऊँची छत पर मोटा गठीला बन्दर पेट में अपनी टाँग दाबे चारों तरफ़ सिर घुमा-घुमाकर देखता है। वह घुटनों को अपने काले हाथों से सहलाता है। कुछ बन्दर उसके आसपास गुलाटियाँ खाते। सधी लय में। वह चुपचाप उन्हें चौकन्ना देखता।'


- 'सुदिन' कहानी का अंश

शशांक (Shashank )

18 अक्टूबर 1953 को ग्राम सरवा, कानपुर में जन्म। जीव विज्ञान, व्यावहारिक मनोविज्ञान और पत्रकारिता में शिक्षा | रायरसन विश्वविद्यालय, कनाडा द्वारा कोटा में विकास प्रसारण का विशेष प्रशिक्षण। फैलो

show more details..

My Rating

Log In To Add/edit Rating

You Have To Buy The Product To Give A Review

All Ratings


No Ratings Yet

E-mails (subscribers)

Learn About New Offers And Get More Deals By Joining Our Newsletter