मेरे लिए निबन्ध लिखना रचनाओं से वैचारिक संवाद स्थापित करना भर नहीं है, उनकी पाठात्मकता में पैठकर रचना-चिन्ताओं, रचना की समस्याओं का नये सिरे से सामना करना है। रचना-कर्म में प्रवेश करने, उनका भाष्य करने का अर्थ है, उन पर युग सन्दर्भो में नये सिरे से विचार करना, उनको खोल-खँगालकर समझना-समझाना। अर्थ के एकत्व से हटकर टेक्स्ट या पाठ की बहुलार्थकता, अर्थ-व्यंजकता पर ध्यान केन्द्रित करना मेरा पाठक स्वभाव रहा है। इन लेखों में समय, समाज-संस्कृति और राजनीति से संवाद-विवाद का स्वर प्रमुख है। नवजागरण देशी स्वच्छन्दतावाद के प्रकाश में रचना-कर्म की अन्तर्यात्रा करने का प्रयत्न संकल्प रूप में रहा है।
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