Barf

Usha Sharma Author
Hardbound
Hindi
9789387889446
1st
2018
112
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समर्थ युवा कथाकारों की सम्भावनाशील पाँत में उषा शर्मा की सर्जनात्मक ऊर्जा स्वयं को विशेष रूप से पढ़े जाने और अलग से रेखांकित किये जाने की माँग ही नहीं करती बल्कि उनकी बहुकोणीय कथाभिव्यक्ति और कहन में विन्यस्त सुस्पष्ट कथादृष्टि, समकालीन युवा रचनाशीलता के समक्ष कुछ नयी चुनौतियों की चौखटें उघाड़ती हुई इस मुद्दे पर विचार करने की विनम्र माँग करती है कि कथा कहन में शैल्पिक गुँजलक का सायास आरोपण कथा के स्वाभाविक विकास को कहीं बाधित नहीं करता।

जाहिर है उषा की कहानियाँ शैल्पिक गुँजलक से बाहर रहने के लिए सचेत हैं। वे अपने कथा विन्यास को बौद्धिक चाशनी में लपेट पाठकों को चमत्कृत करने से परहेज करती हैं। उनकी कथा दृष्टि का सुधी पाठकों से सहज तादात्म्य स्थापित हो जाता है और यह उनकी बड़ी विशेषता लगती है। इसके लिए मैं उन्हें बधाई देना चाहती हूँ। उनकी अनेक उल्लेखनीय कहानियाँ चाहे वह 'फूलदेही की छत' हो या 'बर्फ़' या 'माँ मर गयी' या 'झूलाघर' या 'अच्छा चलता हूँ' आदि इसी वैशिष्ट्य से स्पन्दित अपनी दृष्टि दायरे से सहज जोड़ लेने वाली कहानियाँ हैं कि पाठक अन्त पर पहुँचकर स्वयं को द्वन्द्व के कठघरे में दाखिल हुआ महसूस करता है।
- भूमिका से

उषा शर्मा (Usha Sharma )

कई दर्जन कहानियाँ व बाल कहानियाँ, समीक्षाएँ, आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं- परिकथा, साहित्य अमृत, शब्द योग, जनसत्ता, दैनिक जागरण, सहारा समय, पराग, बाल भारती, दिनमान, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्त

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