Jungli Kabootar

Paperback
Hindi
9789350003312
5th
2024
88
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दुनिया तेज़ी से बदली है।
वर्षों पहले नहीं, बस ज़रा दस-बीस साल पीछे चले जाइए तो पर्दे में भी रही एक पिछड़ी दुनिया हमारे सामने आ जाती है। अब ज़रा सोचिए कि इस्मत ने जब लिखने की कल्पना की होगी, तब की दुनिया कैसी होगी, लेकिन इस्मत तो इस्मत थी। अपने समय से काफ़ी आगे चलने वाली, काफ़ी आगे देखने वाली इस्मत के 'लिहाफ' में हलचल हुई तो कट्टरवादी भौंचक रह गये। तरक़्क़ी पसन्दों को एक मज़बूत हथियार और सहारा मिल गया। मंटो को एक बेहतरीन लड़ाकू दोस्त। इस्मत का 'लिहाफ' हिलता था और सारे जग की नंगी सच्चाई उगल देता था । शायद इसलिए इस्मत पर फतवे भी लगे मुकद्दमें भी हुए। उनके साहित्य को 'गन्दा' और 'भौंदा' साहित्य कहने वालों की भी कमी नहीं थी। मगर इस्मत तेज़ी से अपनी कहानियों की 'मार्फत', विशेषकर महिलाओं के दिल में जगह बनाती जा रही थी। क्योंकि इन कहानियों में एक नयी दुनिया आबाद थी। यहाँ औरत कमज़ोर और मज़लूम नहीं थी। वो सिर्फ अन्याय के आगे हथियार डालकर ‘औरत-धर्म' निभाने को मजबूर नहीं थी बल्कि वो तो मर्दों से भी दो क़दम आगे थी। अर्थात्, कहीं-कहीं तो वो ‘आबिदा' (जंगली कबूतर) भी थी। यानी इन्सान से भी दो क़दम आगे की उम्मीदवार।
इस्मत की कहानियों का तर्जुमा आसान नहीं। सबसे भारी मुसीबत है-भाषा क्योंकि इस्मत की कहानियों में विषय के साथ सबसे चौंकाने वाली चीज़ होती है- 'भाषा' आप इस अजीबोगरीब भाषा का क्या करेंगे। गालिब के अशआर का तर्जुमा यदि मुमकिन है तो इस्मत की कहानियों का भी तर्जुमा हो सकता है। मगर आप जानिए, गालिब तो गालिब थे, गालिब का असल मज़ा तो भाषा में है। बस यहीं इस्मत को भी 'छका' देती है। निगोड़ी, ऐसी अजीबोगरीब ज़बान का इस्तेमाल करती हैं कि बड़े-बड़ों और अच्छे-अच्छों को पसीना निकल आया। इस भाषा के लिए अलग से 'अर्थ' की दुकान नहीं खोली जा सकती, इसलिए ज़्यादा जगहों पर इस्मत की ख़ूबसूरत ज़बान से ज्यादा छेड़-छाड़ की कोशिश नहीं की गयी है। हाँ, कहीं-कहीं हिन्दी तर्जुमा ज़रूरी मालूम हुआ है, तो लफ्ज़ बदले गये हैं, तर्जुमे में नबी अहमद ने सहयोग दिया है।
इस्मत अपने फन में 'यकता' हैं, वाणी प्रकाशन की यह भी कोशिश है कि इस्मत का समग्र साहित्य को पेश किया जाये। यदि वो ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो न सिर्फ़ पाठकों, बल्कि यह हिन्दी भाषा को समृद्ध करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम होगा।
- मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी

मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी (Musharraf Alam Zauqi)

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नबी अहमद (Nabi Ahmad)

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इस्मत चुग़ताई (Ismat Chughtai)

इस्मत चुगताई (1912-1992) उर्दू कथा साहित्य में अपनी बेबाक अभिव्यक्ति के लिए अलग से जानी जाती हैं। उनकी कृतियों में मानवीय करुणा और सक्रिय प्रतिरोध का दुर्लभ सामंजस्य है जिसकी बिना पर उनकी सर्जनात्

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