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सन्तोष चौबे की पहचान हिन्दी कथा साहित्य में एक नवोन्मेषी कहानीकार की है। इसका कारण है इनकी वह कहन शैली अर्थात् क्रिस्सागोई जिसके चलते ये अपनी कहानियों में प्रचलित कथा मुहावरे और विमर्शो के बरक्स अपना अलग मुहावरा गढ़ते नज़र आते हैं। मनुष्य के जीवन के नीरस कोलाहल से उस संगीतमय नाद को अपनी कथा-वस्तु बनाते हैं, जो जाने-अनजाने हमसे छूटता जा रहा है। दूसरे अर्थों में कहें तो सन्तोष चौबे की कहानियाँ नये ढंग की क़िस्सागोई के साथ पाठक के सामने आती हैं। कभी-कभी तो ये कहानियाँ मानवतावादी परम्पराओं के निषेध, सामाजिक शुचिता और वर्जनाओं के मोहभंग की कहानियाँ लगती हैं। इसका एक कारण है, और वह यह कि प्रेम, सेक्स और संगीत सन्तोष चौबे की ज़्यादातर कहानियों का प्रस्थान-बिन्दु और गन्तव्य दोनों ही हैं। इस क्रम में वे स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के इस आधारभूत फ़लक को जीवन्तता और नवोन्मेष का केन्द्रीय कारक मानते हैं। यही कारण है कि इनमें रह-रह कर शास्त्रीयता की भीनी गन्ध और प्रेम की तरलता का एहसास होता है। मगर यह तरलता यहाँ जीवन की एकरसता और जड़ता को तोड़ने के एक संसाधन के तौर पर ही सामने आती है। इसीलिए कभी-कभी इनकी कहानियाँ कथित सामाजिक नैतिकताओं और वर्जनाओं का अतिक्रमण करती नज़र आती भी हैं, और नहीं भी आती हैं।
इन कहानियों में लेखक ने अपने विलक्षण अनुभवों को जिस रोचक, आत्म-व्यंग्य लहज़े और पैनेपन के साथ प्रस्तुत किया है, उसने एक नये आस्वाद के साथ-साथ एक नया सौन्दर्य और संस्कार भी प्रदान किया है । जीवनानुभवों की अनेक परतों को उद्घाटित करती इन कहानियों का मिजाज़ समकालीन कथा साहित्य को एक दूसरे धरातल पर ले जाता नज़र आता है। ये कहानियाँ किसी भ्रम का शिकार नहीं हैं बल्कि 'प्रकृति की परिवर्तनशीलता' सिद्धान्त का ही अनुसरण करती हैं। इन पर न तो किसी तरह का कोई कलावाद हावी है, और न ही ये किसी वैचारिकता के लबादे में लिपटी हुई हैं। बल्कि कहीं-कहीं ये वैचारिक अवसरवाद पर भी गहरी चोट करती हैं। हर बार अलग मुद्दों पर केन्द्रित कहानियाँ पाठकों के लिए कोई नया सन्देश देती हैं। इस संग्रह की कहानियों में भविष्य का वह आसमान दिखाई देता है जो खुले कैनवास की तरह है। जीवन-जगत के सुख-दुःख और हास-परिहासों की मौजूदगी के चलते ये कहानियाँ हमें हमारी, अपनी और सबकी कहानियाँ लगती हैं। सन्तोष चौबे के अनुभव दूसरे अनुशासनों से अर्जित किए हुए अनुभव हैं इसीलिए वे कहीं ज्यादा समृद्ध हैं। इनका यह अनुशासन वह अनुशासन है जो तर्क, विवेक और कल्पनाशीलता पर आधारित है। सादे गद्य में पगी ये कहानियाँ एक लेखक के लोकानुभवों की सादगी को बड़ी शालीनता के साथ बयान करती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने तरह के आस्वाद से परिपूर्ण और अपने नये मिजाज़ की ये कहानियाँ पाठक के अन्तर्मन में गहरे तक उतरेंगी।
-भगवानदास मोरवाल
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